Deutsch 46-1 Korinther 002(Schl2000)
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1 | 1 Korinther 2,1 | So bin auch ich, meine Brüder, als ich zu euch kam, nicht gekommen, um euch in hervorragender Rede oder Weisheit das Zeugnis Gottes zu verkündigen. | -- bin ---- ---- meine -------- --- ich -- ---- kam, ----- --------- um ---- -- hervorragender ---- ---- Weisheit --- ------- Gottes -- ------------- | -- --- auch ---- ----- -------- --- ich -- ---- ---- ----- gekommen, -- ---- -- -------------- Rede ---- -------- --- ------- Gottes -- ------------- | 1 Korinther 2,1 |
2 | 1 Korinther 2,2 | Denn ich hatte mir vorgenommen, unter euch nichts anderes zu wissen als nur Jesus Christus, und zwar als Gekreuzigten. | ---- ich ----- --- vorgenommen, ----- ---- nichts ------- -- wissen --- --- Jesus --------- --- zwar --- ------------- | ---- --- hatte --- ------------ ----- ---- nichts ------- -- ------ --- nur ----- --------- --- ---- als ------------- | 1 Korinther 2,2 |
3 | 1 Korinther 2,3 | Und ich war in Schwachheit und mit viel Furcht und Zittern bei euch. | --- ich --- -- Schwachheit --- --- viel ------ --- Zittern --- ----- | --- --- war -- ----------- --- --- viel ------ --- ------- --- euch. | 1 Korinther 2,3 |
4 | 1 Korinther 2,4 | Und meine Rede und meine Verkündigung bestand nicht in überredenden Worten menschlicher Weisheit, sondern in Erweisung des Geistes und der Kraft, | --- meine ---- --- meine ------------- ------- nicht -- ------------- Worten ------------ --------- sondern -- --------- des ------- --- der ------ | --- ----- Rede --- ----- ------------- ------- nicht -- ------------- ------ ------------ Weisheit, ------- -- --------- --- Geistes --- --- ------ | 1 Korinther 2,4 |
5 | 1 Korinther 2,5 | damit euer Glaube nicht auf Menschenweisheit beruhe, sondern auf Gottes Kraft. | ----- euer ------ ----- auf ---------------- ------- sondern --- ------ Kraft. | ----- ---- Glaube ----- --- ---------------- ------- sondern --- ------ ------ | 1 Korinther 2,5 |
6 | 1 Korinther 2,6 | Wir reden allerdings Weisheit unter den Gereiften; aber nicht die Weisheit dieser Weltzeit, auch nicht der Herrscher dieser Weltzeit, die vergehen, | --- reden ---------- -------- unter --- ---------- aber ----- --- Weisheit ------ --------- auch ----- --- Herrscher ------ --------- die --------- | --- ----- allerdings -------- ----- --- ---------- aber ----- --- -------- ------ Weltzeit, ---- ----- --- --------- dieser --------- --- --------- | 1 Korinther 2,6 |
7 | 1 Korinther 2,7 | sondern wir reden Gottes Weisheit im Geheimnis, die verborgene, die Gott vor den Weltzeiten zu unserer Herrlichkeit vorherbestimmt hat, | ------- wir ----- ------ Weisheit -- ---------- die ----------- --- Gott --- --- Weltzeiten -- ------- Herrlichkeit -------------- ---- | ------- --- reden ------ -------- -- ---------- die ----------- --- ---- --- den ---------- -- ------- ------------ vorherbestimmt ---- | 1 Korinther 2,7 |
8 | 1 Korinther 2,8 | die keiner der Herrscher dieser Weltzeit erkannt hat - denn wenn sie sie erkannt hätten, so hätten sie den Herrn der Herrlichkeit nicht gekreuzigt -, | --- keiner --- --------- dieser -------- ------- hat - ---- wenn --- --- erkannt -------- -- hätten --- --- Herrn --- ------------ nicht ---------- -- | --- ------ der --------- ------ -------- ------- hat - ---- ---- --- sie ------- -------- -- ------- sie --- ----- --- ------------ nicht ---------- -- | 1 Korinther 2,8 |
9 | 1 Korinther 2,9 | sondern, wie geschrieben steht: »Was kein Auge gesehen und kein Ohr gehört und keinem Menschen ins Herz gekommen ist, was Gott denen bereitet hat, die ihn lieben«. | -------- wie ----------- ------ »Was ---- ---- gesehen --- ---- Ohr ------- --- keinem -------- --- Herz -------- ---- was ---- ----- bereitet ---- --- ihn --------- | -------- --- geschrieben ------ ----- ---- ---- gesehen --- ---- --- ------- und ------ -------- --- ---- gekommen ---- --- ---- ----- bereitet ---- --- --- --------- | 1 Korinther 2,9 |
10 | 1 Korinther 2,10 | Uns aber hat es Gott geoffenbart durch seinen Geist; denn der Geist erforscht alles, auch die Tiefen Gottes. | --- aber --- -- Gott ----------- ----- seinen ------ ---- der ----- --------- alles, ---- --- Tiefen ------- | --- ---- hat -- ---- ----------- ----- seinen ------ ---- --- ----- erforscht ------ ---- --- ------ Gottes. | 1 Korinther 2,10 |
11 | 1 Korinther 2,11 | Denn wer von den Menschen kennt die [Gedanken] des Menschen als nur der Geist des Menschen, der in ihm ist? So kennt auch niemand die [Gedanken] Gottes als nur der Geist Gottes. | ---- wer --- --- Menschen ----- --- [Gedanken] --- -------- als --- --- Geist --- --------- der -- --- ist? -- ----- auch ------- --- [Gedanken] ------ --- nur --- ----- Gottes. | ---- --- von --- -------- ----- --- [Gedanken] --- -------- --- --- der ----- --- --------- --- in --- ---- -- ----- auch ------- --- ---------- ------ als --- --- ----- ------- | 1 Korinther 2,11 |
12 | 1 Korinther 2,12 | Wir aber haben nicht den Geist der Welt empfangen, sondern den Geist, der aus Gott ist, so dass wir wissen können, was uns von Gott geschenkt ist; | --- aber ----- ----- den ----- --- Welt ---------- ------- den ------ --- aus ---- ---- so ---- --- wissen -------- --- uns --- ---- geschenkt ---- | --- ---- haben ----- --- ----- --- Welt ---------- ------- --- ------ der --- ---- ---- -- dass --- ------ -------- --- uns --- ---- --------- ---- | 1 Korinther 2,12 |
13 | 1 Korinther 2,13 | und davon reden wir auch, nicht in Worten, die von menschlicher Weisheit gelehrt sind, sondern in solchen, die vom Heiligen Geist gelehrt sind, indem wir Geistliches geistlich erklären. | --- davon ----- --- auch, ----- -- Worten, --- --- menschlicher -------- ------- sind, ------- -- solchen, --- --- Heiligen ----- ------- sind, ----- --- Geistliches --------- ---------- | --- ----- reden --- ----- ----- -- Worten, --- --- ------------ -------- gelehrt ----- ------- -- -------- die --- -------- ----- ------- sind, ----- --- ----------- --------- erklären. | 1 Korinther 2,13 |
14 | 1 Korinther 2,14 | Der natürliche Mensch aber nimmt nicht an, was vom Geist Gottes ist; denn es ist ihm eine Torheit, und er kann es nicht erkennen, weil es geistlich beurteilt werden muss. | --- natürliche ------ ---- nimmt ----- --- was --- ----- Gottes ---- ---- es --- --- eine -------- --- er ---- -- nicht --------- ---- es --------- --------- werden ----- | --- ----------- Mensch ---- ----- ----- --- was --- ----- ------ ---- denn -- --- --- ---- Torheit, --- -- ---- -- nicht --------- ---- -- --------- beurteilt ------ ----- | 1 Korinther 2,14 |
15 | 1 Korinther 2,15 | Der geistliche [Mensch] dagegen beurteilt zwar alles, er selbst jedoch wird von niemand beurteilt; | --- geistliche -------- ------- beurteilt ---- ------ er ------ ------ wird --- ------- beurteilt; | --- ---------- [Mensch] ------- --------- ---- ------ er ------ ------ ---- --- niemand ---------- | 1 Korinther 2,15 |
16 | 1 Korinther 2,16 | denn »wer hat den Sinn des Herrn erkannt, dass er ihn belehre?« Wir aber haben den Sinn des Christus. | ---- »wer --- --- Sinn --- ----- erkannt, ---- -- ihn ---------- --- aber ----- --- Sinn --- --------- | ---- ----- hat --- ---- --- ----- erkannt, ---- -- --- ---------- Wir ---- ----- --- ---- des --------- | 1 Korinther 2,16 |