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Deutsch 18-Hiob 003(Schl2000)

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1

Hiob 3,1

Danach tat Hiob seinen Mund auf und verfluchte den Tag seiner Geburt.

------ tat ---- ------ Mund --- --- verfluchte --- --- seiner -------

------ --- Hiob ------ ---- --- --- verfluchte --- --- ------ -------

Hiob 3,1


2

Hiob 3,2

Und Hiob begann und sprach:

--- Hiob ------ --- sprach:

--- ---- begann --- -------

Hiob 3,2


3

Hiob 3,3

O wäre doch der Tag ausgelöscht, da ich geboren wurde, und die Nacht, die sprach: Ein Knabe ist gezeugt!

- wäre ---- --- Tag ------------- -- ich ------- ------ und --- ------ die ------- --- Knabe --- --------

- ----- doch --- --- ------------- -- ich ------- ------ --- --- Nacht, --- ------- --- ----- ist --------

Hiob 3,3


4

Hiob 3,4

Wäre doch dieser Tag Finsternis geblieben; hätte doch Gott in der Höhe sich nicht um ihn gekümmert, und wäre doch niemals das Tageslicht über ihm aufgeleuchtet!

----- doch ------ --- Finsternis ---------- ------ doch ---- -- der ----- ---- nicht -- --- gekümmert, --- ----- doch ------- --- Tageslicht ----- --- aufgeleuchtet!

----- ---- dieser --- ---------- ---------- ------ doch ---- -- --- ----- sich ----- -- --- ----------- und ----- ---- ------- --- Tageslicht ----- --- --------------

Hiob 3,4


5

Hiob 3,5

Hätten doch Finsternis und Todesschatten ihn zurückgefordert, Gewölk sich auf ihm niedergelassen und diesen trüben Tag überfallen!

------- doch ---------- --- Todesschatten --- ----------------- Gewölk ---- --- ihm -------------- --- diesen ------- --- überfallen!

------- ---- Finsternis --- ------------- --- ----------------- Gewölk ---- --- --- -------------- und ------ ------- --- ------------

Hiob 3,5


6

Hiob 3,6

Und jene Nacht - hätte doch das Dunkel sie hinweggerafft, hätte sie sich nur nicht gefreut unter den Tagen des Jahres, und wäre sie doch nicht in die Zahl der Monate eingereiht worden!

--- jene ----- - hätte ---- --- Dunkel --- -------------- hätte --- ---- nur ----- ------- unter --- ----- des ------- --- wäre --- ---- nicht -- --- Zahl --- ------ eingereiht -------

--- ---- Nacht - ------ ---- --- Dunkel --- -------------- ------ --- sich --- ----- ------- ----- den ----- --- ------- --- wäre --- ---- ----- -- die ---- --- ------ ---------- worden!

Hiob 3,6


7

Hiob 3,7

Ja, wäre doch jene Nacht unfruchtbar geblieben, hätte doch kein Jubel sie erreicht!

--- wäre ---- ---- Nacht ----------- ---------- hätte ---- ---- Jubel --- ---------

--- ----- doch ---- ----- ----------- ---------- hätte ---- ---- ----- --- erreicht!

Hiob 3,7


8

Hiob 3,8

Hätten sie doch die verwünscht, die den Tag verfluchen können, die imstande sind, den Leviathan aufzuwecken!

------- sie ---- --- verwünscht, --- --- Tag ---------- -------- die -------- ----- den --------- ------------

------- --- doch --- ------------ --- --- Tag ---------- -------- --- -------- sind, --- --------- ------------

Hiob 3,8


9

Hiob 3,9

Hätten sich doch die Sterne ihrer [Morgen]dämmerung verfinstert, hätte sie doch auf Licht gehofft, ohne dass es erschienen wäre; hätte sie doch die Strahlen der Morgenröte nicht geschaut!

------- sich ---- --- Sterne ----- ------------------ verfinstert, ------ --- doch --- ----- gehofft, ---- ---- es ---------- ------ hätte --- ---- die -------- --- Morgenröte ----- ---------

------- ---- doch --- ------ ----- ------------------ verfinstert, ------ --- ---- --- Licht -------- ---- ---- -- erschienen ------ ------ --- ---- die -------- --- ----------- ----- geschaut!

Hiob 3,9


10

Hiob 3,10

Doch sie verschloss mir nicht die Pforte des Mutterleibes, und verbarg nicht den Jammer vor meinen Augen.

---- sie ---------- --- nicht --- ------ des ------------- --- verbarg ----- --- Jammer --- ------ Augen.

---- --- verschloss --- ----- --- ------ des ------------- --- ------- ----- den ------ --- ------ ------

Hiob 3,10


11

Hiob 3,11

Warum starb ich nicht gleich bei der Geburt, kam nicht um, sobald ich aus dem Mutterschoß hervorging?

----- starb --- ----- gleich --- --- Geburt, --- ----- um, ------ --- aus --- ------------ hervorging?

----- ----- ich ----- ------ --- --- Geburt, --- ----- --- ------ ich --- --- ------------ -----------

Hiob 3,11


12

Hiob 3,12

Warum kamen mir Knie entgegen, und wozu Brüste, dass ich daran trank?

----- kamen --- ---- entgegen, --- ---- Brüste, ---- --- daran ------

----- ----- mir ---- --------- --- ---- Brüste, ---- --- ----- ------

Hiob 3,12


13

Hiob 3,13

Denn jetzt läge ich da und wäre still; ich wäre entschlafen und hätte nun Ruhe,

---- jetzt ----- --- da --- ----- still; --- ----- entschlafen --- ------ nun -----

---- ----- läge --- -- --- ----- still; --- ----- ----------- --- hätte --- -----

Hiob 3,13


14

Hiob 3,14

[zusammen] mit Königen und Ratgebern der Erde, die sich längst verfallene Paläste erbauten,

---------- mit -------- --- Ratgebern --- ----- die ---- ------- verfallene -------- ---------

---------- --- Königen --- --------- --- ----- die ---- ------- ---------- -------- erbauten,

Hiob 3,14


15

Hiob 3,15

oder mit Fürsten, reich an Gold, die in ihren Häusern Silber häuften.

---- mit --------- ----- an ----- --- in ----- -------- Silber ---------

---- --- Fürsten, ----- -- ----- --- in ----- -------- ------ ---------

Hiob 3,15


16

Hiob 3,16

Oder wäre ich doch niemals dagewesen, wie eine verscharrte Fehlgeburt, den Kindern gleich, die nie das Licht erblickten!

---- wäre --- ---- niemals ---------- --- eine ----------- ----------- den ------- ------- die --- --- Licht -----------

---- ----- ich ---- ------- ---------- --- eine ----------- ----------- --- ------- gleich, --- --- --- ----- erblickten!

Hiob 3,16


17

Hiob 3,17

Dort hört das Toben der Gottlosen auf, dort finden die Erschöpften Ruhe;

---- hört --- ----- der --------- ---- dort ------ --- Erschöpften -----

---- ----- das ----- --- --------- ---- dort ------ --- ------------ -----

Hiob 3,17


18

Hiob 3,18

[dort] sind alle Gefangenen in Frieden, sie hören die Stimme des Treibers nicht mehr;

------ sind ---- ---------- in -------- --- hören --- ------ des -------- ----- mehr;

------ ---- alle ---------- -- -------- --- hören --- ------ --- -------- nicht -----

Hiob 3,18


19

Hiob 3,19

Kleine und Große sind dort gleich, und der Knecht ist frei von seinem Herrn!

------ und ------ ---- dort ------- --- der ------ --- frei --- ------ Herrn!

------ --- Große ---- ---- ------- --- der ------ --- ---- --- seinem ------

Hiob 3,19


20

Hiob 3,20

Warum lässt Er Lebensmüde noch das Licht sehen und gibt Leben den Verbitterten,

----- lässt -- ----------- noch --- ----- sehen --- ---- Leben --- -------------

----- ------ Er ----------- ---- --- ----- sehen --- ---- ----- --- Verbitterten,

Hiob 3,20


21

Hiob 3,21

[denen], die auf den Tod harren, und er kommt nicht, die nach ihm graben, mehr als nach verborgenen Schätzen;

-------- die --- --- Tod ------- --- er ----- ------ die ---- --- graben, ---- --- nach ----------- ----------

-------- --- auf --- --- ------- --- er ----- ------ --- ---- ihm ------- ---- --- ---- verborgenen ----------

Hiob 3,21


22

Hiob 3,22

die sich jubelnd freuen würden, die frohlockten, wenn sie ein Grab fänden,

--- sich ------- ------ würden, --- ------------ wenn --- --- Grab --------

--- ---- jubelnd ------ -------- --- ------------ wenn --- --- ---- --------

Hiob 3,22


23

Hiob 3,23

dem Mann, dem sein Weg verborgen ist, den Gott rings umzäunt hat?

--- Mann, --- ---- Weg --------- ---- den ---- ----- umzäunt ----

--- ----- dem ---- --- --------- ---- den ---- ----- -------- ----

Hiob 3,23


24

Hiob 3,24

Denn statt zu essen, seufze ich, und mein Gestöhn ergießt sich wie Wasser.

---- statt -- ------ seufze ---- --- mein -------- -------- sich --- -------

---- ----- zu ------ ------ ---- --- mein -------- -------- ---- --- Wasser.

Hiob 3,24


25

Hiob 3,25

Denn das Schreckliche, das ich befürchtet habe, ist über mich gekommen, und wovor mir graute, das hat mich getroffen.

---- das ------------- --- ich ----------- ----- ist ----- ---- gekommen, --- ----- mir ------- --- hat ---- ----------

---- --- Schreckliche, --- --- ----------- ----- ist ----- ---- --------- --- wovor --- ------- --- --- mich ----------

Hiob 3,25


26

Hiob 3,26

Ich konnte nicht ruhen und nicht rasten, und kaum hatte ich mich erholt, so kam ein [neuer] Sturm über mich!

--- konnte ----- ----- und ----- ------- und ---- ----- ich ---- ------- so --- --- [neuer] ----- ----- mich!

--- ------ nicht ----- --- ----- ------- und ---- ----- --- ---- erholt, -- --- --- ------- Sturm ----- -----

Hiob 3,26