Deutsch 18-Hiob 012(Schl2000)
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1 | Hiob 12,1 | Und Hiob antwortete und sprach: | --- Hiob ---------- --- sprach: | --- ---- antwortete --- ------- | Hiob 12,1 |
2 | Hiob 12,2 | Wahrlich, ihr seid die [rechten] Leute, und mit euch wird die Weisheit aussterben! | --------- ihr ---- --- [rechten] ------ --- mit ---- ---- die -------- ----------- | --------- --- seid --- --------- ------ --- mit ---- ---- --- -------- aussterben! | Hiob 12,2 |
3 | Hiob 12,3 | Auch ich habe Verstand wie ihr und stehe nicht hinter euch zurück; wer wüsste denn diese Dinge nicht? | ---- ich ---- -------- wie --- --- stehe ----- ------ euch -------- --- wüsste ---- ----- Dinge ------ | ---- --- habe -------- --- --- --- stehe ----- ------ ---- -------- wer ------- ---- ----- ----- nicht? | Hiob 12,3 |
4 | Hiob 12,4 | Ich bin wie einer, der zum Gespött für seine Freunde wird; dabei rief ich [einst] zu Gott und wurde von ihm erhört! Der untadelige Gerechte wird zum Gespött! | --- bin --- ------ der --- -------- für ----- ------- wird; ----- ---- ich ------- -- Gott --- ----- von --- -------- Der ---------- -------- wird --- --------- | --- --- wie ------ --- --- -------- für ----- ------- ----- ----- rief --- ------- -- ---- und ----- --- --- -------- Der ---------- -------- ---- --- Gespött! | Hiob 12,4 |
5 | Hiob 12,5 | »Dem Unglück gebührt Verachtung!«, so meint der Sichere; ja, einen Stoß noch für die, deren Fuß wankt! | ----- Unglück -------- -------------- so ----- --- Sichere; --- ----- Stoß ---- ---- die, ----- ---- wankt! | ----- -------- gebührt -------------- -- ----- --- Sichere; --- ----- ----- ---- für ---- ----- ---- ------ | Hiob 12,5 |
6 | Hiob 12,6 | Die Zelte der Räuber haben Ruhe, und in Sicherheit leben die, welche Gott reizen, diejenigen, die Gott in ihrer Faust führen. | --- Zelte --- ------- haben ----- --- in ---------- ----- die, ------ ---- reizen, ----------- --- Gott -- ----- Faust -------- | --- ----- der ------- ----- ----- --- in ---------- ----- ---- ------ Gott ------- ----------- --- ---- in ----- ----- -------- | Hiob 12,6 |
7 | Hiob 12,7 | Aber frage doch das Vieh, und es wird dich belehren, oder die Vögel des Himmels, und sie werden dir's verkünden, | ---- frage ---- --- Vieh, --- -- wird ---- --------- oder --- ------ des -------- --- sie ------ ----- verkünden, | ---- ----- doch --- ----- --- -- wird ---- --------- ---- --- Vögel --- -------- --- --- werden ----- ----------- | Hiob 12,7 |
8 | Hiob 12,8 | oder rede mit der Erde, und sie wird dich unterweisen, und die Fische im Meer erzählen es dir. | ---- rede --- --- Erde, --- --- wird ---- ------------ und --- ------ im ---- --------- es ---- | ---- ---- mit --- ----- --- --- wird ---- ------------ --- --- Fische -- ---- --------- -- dir. | Hiob 12,8 |
9 | Hiob 12,9 | Wer unter allen diesen wüsste nicht, dass die Hand des HERRN dies gemacht hat, | --- unter ----- ------ wüsste ------ ---- die ---- --- HERRN ---- ------- hat, | --- ----- allen ------ ------- ------ ---- die ---- --- ----- ---- gemacht ---- | Hiob 12,9 |
10 | Hiob 12,10 | dass in seiner Hand die Seele alles Lebendigen ist und der Geist jedes menschlichen Fleisches? | ---- in ------ ---- die ----- ----- Lebendigen --- --- der ----- ----- menschlichen ---------- | ---- -- seiner ---- --- ----- ----- Lebendigen --- --- --- ----- jedes ------------ ---------- | Hiob 12,10 |
11 | Hiob 12,11 | Prüft nicht das Ohr die Worte, wie der Gaumen die Speise schmeckt? | ------ nicht --- --- die ------ --- der ------ --- Speise --------- | ------ ----- das --- --- ------ --- der ------ --- ------ --------- | Hiob 12,11 |
12 | Hiob 12,12 | Wohnt bei den Greisen die Weisheit und bei den Betagten der Verstand? | ----- bei --- ------- die -------- --- bei --- -------- der --------- | ----- --- den ------- --- -------- --- bei --- -------- --- --------- | Hiob 12,12 |
13 | Hiob 12,13 | Bei Ihm ist Weisheit und Stärke, Sein ist Rat und Verstand! | --- Ihm --- -------- und -------- ---- ist --- --- Verstand! | --- --- ist -------- --- -------- ---- ist --- --- --------- | Hiob 12,13 |
14 | Hiob 12,14 | Siehe, wenn Er niederreißt, wird nicht wieder aufgebaut; wenn er über dem Menschen zuschließt, wird nicht wieder geöffnet. | ------ wenn -- ------------- wird ----- ------ aufgebaut; ---- -- über --- -------- zuschließt, ---- ----- wieder ---------- | ------ ---- Er ------------- ---- ----- ------ aufgebaut; ---- -- ----- --- Menschen ------------ ---- ----- ------ geöffnet. | Hiob 12,14 |
15 | Hiob 12,15 | Siehe, wenn er die Gewässer zurückhält, so vertrocknen sie; lässt er sie los, so verwüsten sie das Land. | ------ wenn -- --- Gewässer ------------- -- vertrocknen ---- ------ er --- ---- so ---------- --- das ----- | ------ ---- er --- --------- ------------- -- vertrocknen ---- ------ -- --- los, -- ---------- --- --- Land. | Hiob 12,15 |
16 | Hiob 12,16 | Bei ihm ist Macht und Verstand; ihm gehört, wer irregeht und wer irreführt. | --- ihm --- ----- und --------- --- gehört, --- -------- und --- ----------- | --- --- ist ----- --- --------- --- gehört, --- -------- --- --- irreführt. | Hiob 12,16 |
17 | Hiob 12,17 | Er führt die Ratgeber beraubt hinweg und macht Richter zu Narren. | -- führt --- -------- beraubt ------ --- macht ------- -- Narren. | -- ------ die -------- ------- ------ --- macht ------- -- ------- | Hiob 12,17 |
18 | Hiob 12,18 | Die Herrschaft der Könige löst er auf und schlingt eine Fessel um ihre Lenden. | --- Herrschaft --- ------- löst -- --- und -------- ---- Fessel -- ---- Lenden. | --- ---------- der ------- ----- -- --- und -------- ---- ------ -- ihre ------- | Hiob 12,18 |
19 | Hiob 12,19 | Er führt die Priester beraubt hinweg und stürzt die Festgegründeten um. | -- führt --- -------- beraubt ------ --- stürzt --- ---------------- um. | -- ------ die -------- ------- ------ --- stürzt --- ---------------- --- | Hiob 12,19 |
20 | Hiob 12,20 | Er nimmt den Wohlbewährten die Sprache weg und raubt den Alten die Urteilskraft. | -- nimmt --- -------------- die ------- --- und ----- --- Alten --- ------------- | -- ----- den -------------- --- ------- --- und ----- --- ----- --- Urteilskraft. | Hiob 12,20 |
21 | Hiob 12,21 | Er schüttet Verachtung über die Edlen und löst den Gürtel der Starken. | -- schüttet ---------- ----- die ----- --- löst --- ------- der -------- | -- --------- Verachtung ----- --- ----- --- löst --- ------- --- -------- | Hiob 12,21 |
22 | Hiob 12,22 | Er enthüllt, was im Finstern verborgen liegt, und zieht den Todesschatten ans Licht. | -- enthüllt, --- -- Finstern --------- ------ und ----- --- Todesschatten --- ------ | -- ---------- was -- -------- --------- ------ und ----- --- ------------- --- Licht. | Hiob 12,22 |
23 | Hiob 12,23 | Er macht Völker groß, und er vernichtet sie; er breitet die Völker weit aus, und er führt sie weg. | -- macht ------- ------ und -- ---------- sie; -- ------- die ------- ---- aus, --- -- führt --- ---- | -- ----- Völker ------ --- -- ---------- sie; -- ------- --- ------- weit ---- --- -- ------ sie ---- | Hiob 12,23 |
24 | Hiob 12,24 | Den Häuptern des Volkes im Land nimmt er den Verstand und lässt sie irren in pfadloser Wüste; | --- Häuptern --- ------ im ---- ----- er --- -------- und ------ --- irren -- --------- Wüste; | --- --------- des ------ -- ---- ----- er --- -------- --- ------ sie ----- -- --------- ------- | Hiob 12,24 |
25 | Hiob 12,25 | sie tappen in Finsternis ohne Licht; er lässt sie taumeln wie Betrunkene. | --- tappen -- ---------- ohne ------ -- lässt --- ------- wie ----------- | --- ------ in ---------- ---- ------ -- lässt --- ------- --- ----------- | Hiob 12,25 |