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Deutsch 18-Hiob 014(Schl2000)

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1

Hiob 14,1

Der Mensch, von der Frau geboren, lebt [nur] kurze Zeit und ist voll Unruhe.

--- Mensch, --- --- Frau -------- ---- [nur] ----- ---- und --- ---- Unruhe.

--- ------- von --- ---- -------- ---- [nur] ----- ---- --- --- voll -------

Hiob 14,1


2

Hiob 14,2

Wie eine Blume sprießt er auf und verwelkt; gleich einem Schatten flieht er und hat keinen Bestand.

--- eine ----- -------- er --- --- verwelkt; ------ ----- Schatten ------ -- und --- ------ Bestand.

--- ---- Blume -------- -- --- --- verwelkt; ------ ----- -------- ------ er --- --- ------ --------

Hiob 14,2


3

Hiob 14,3

Ja, über einem solchen hältst du deine Augen auf, und mit mir gehst du ins Gericht!

--- über ----- ------- hältst -- ----- Augen ---- --- mit --- ----- du --- --------

--- ----- einem ------- ------- -- ----- Augen ---- --- --- --- gehst -- --- --------

Hiob 14,3


4

Hiob 14,4

Wie könnte denn ein Reiner von einem Unreinen kommen? Nicht ein Einziger!

--- könnte ---- --- Reiner --- ----- Unreinen ------- ----- ein ---------

--- ------- denn --- ------ --- ----- Unreinen ------- ----- --- ---------

Hiob 14,4


5

Hiob 14,5

Wenn doch seine Tage bestimmt sind, die Zahl seiner Monate bei dir [festgelegt] ist und du ihm ein Ziel gesetzt hast, das er nicht überschreiten kann,

---- doch ----- ---- bestimmt ----- --- Zahl ------ ------ bei --- ------------ ist --- -- ihm --- ---- gesetzt ----- --- er ----- -------------- kann,

---- ---- seine ---- -------- ----- --- Zahl ------ ------ --- --- [festgelegt] --- --- -- --- ein ---- ------- ----- --- er ----- -------------- -----

Hiob 14,5


6

Hiob 14,6

so schaue doch weg von ihm und lass ihn in Ruhe, damit er seinen Tag froh beendet wie ein Tagelöhner!

-- schaue ---- --- von --- --- lass --- -- Ruhe, ----- -- seinen --- ---- beendet --- --- Tagelöhner!

-- ------ doch --- --- --- --- lass --- -- ----- ----- er ------ --- ---- ------- wie --- ------------

Hiob 14,6


7

Hiob 14,7

Denn für einen Baum gibt es Hoffnung: wird er abgehauen, so sprosst er wieder, und seine Schösslinge bleiben nicht aus.

---- für ----- ---- gibt -- --------- wird -- ---------- so ------- -- wieder, --- ----- Schösslinge ------- ----- aus.

---- ---- einen ---- ---- -- --------- wird -- ---------- -- ------- er ------- --- ----- ------------ bleiben ----- ----

Hiob 14,7


8

Hiob 14,8

Wenn seine Wurzel in der Erde auch alt wird und sein Stumpf im Staub abstirbt,

---- seine ------ -- der ---- ---- alt ---- --- sein ------ -- Staub ---------

---- ----- Wurzel -- --- ---- ---- alt ---- --- ---- ------ im ----- ---------

Hiob 14,8


9

Hiob 14,9

so sprosst er doch wieder vom Duft des Wassers und treibt Zweige, als wäre er neu gepflanzt.

-- sprosst -- ---- wieder --- ---- des ------- --- treibt ------- --- wäre -- --- gepflanzt.

-- ------- er ---- ------ --- ---- des ------- --- ------ ------- als ----- -- --- ----------

Hiob 14,9


10

Hiob 14,10

Der Mann aber stirbt und ist dahin; der Mensch vergeht, und wo ist er?

--- Mann ---- ------ und --- ------ der ------ -------- und -- --- er?

--- ---- aber ------ --- --- ------ der ------ -------- --- -- ist ---

Hiob 14,10


11

Hiob 14,11

Wie Wasser zerrinnen aus dem See, und wie ein Strom vertrocknet und versiegt,

--- Wasser --------- --- dem ---- --- wie --- ----- vertrocknet --- ---------

--- ------ zerrinnen --- --- ---- --- wie --- ----- ----------- --- versiegt,

Hiob 14,11


12

Hiob 14,12

so legt sich auch der Mensch nieder und steht nicht wieder auf; bis die Himmel nicht mehr sind, regen sie sich nicht und werden nicht aufgeweckt aus ihrem Schlaf.

-- legt ---- ---- der ------ ------ und ----- ----- wieder ---- --- die ------ ----- mehr ----- ----- sie ---- ----- und ------ ----- aufgeweckt --- ----- Schlaf.

-- ---- sich ---- --- ------ ------ und ----- ----- ------ ---- bis --- ------ ----- ---- sind, ----- --- ---- ----- und ------ ----- ---------- --- ihrem -------

Hiob 14,12


13

Hiob 14,13

O dass du mich doch im Totenreich verstecken, dass du mich verbergen würdest, bis dein Zorn sich wendet; dass du mir eine Frist setztest und dann wieder an mich gedächtest!

- dass -- ---- doch -- ---------- verstecken, ---- -- mich --------- --------- bis ---- ---- sich ------- ---- du --- ---- Frist -------- --- dann ------ -- mich ------------

- ---- du ---- ---- -- ---------- verstecken, ---- -- ---- --------- würdest, --- ---- ---- ---- wendet; ---- -- --- ---- Frist -------- --- ---- ------ an ---- ------------

Hiob 14,13


14

Hiob 14,14

Aber wird denn der Mensch, wenn er stirbt, [wieder] leben? Die ganze Zeit meines Frondienstes würde ich harren, bis meine Ablösung käme.

---- wird ---- --- Mensch, ---- -- stirbt, -------- ------ Die ----- ---- meines ------------ ------ ich ------- --- meine --------- ------

---- ---- denn --- ------- ---- -- stirbt, -------- ------ --- ----- Zeit ------ ------------ ------ --- harren, --- ----- --------- ------

Hiob 14,14


15

Hiob 14,15

Dann würdest du rufen, und ich würde dir antworten; nach dem Werk deiner Hände würdest du dich sehnen.

---- würdest -- ------ und --- ------ dir ---------- ---- dem ---- ------ Hände -------- -- dich -------

---- -------- du ------ --- --- ------ dir ---------- ---- --- ---- deiner ------ -------- -- ---- sehnen.

Hiob 14,15


16

Hiob 14,16

Nun aber zählst du meine Schritte; achtest du nicht auf meine Sünde?

--- aber ------- -- meine --------- ------- du ----- --- meine -------

--- ---- zählst -- ----- --------- ------- du ----- --- ----- -------

Hiob 14,16


17

Hiob 14,17

Versiegelt ist meine öœbertretung in einem Bündel, und meine Schuld hast du verwahrt.

---------- ist ----- -------------- in ----- -------- und ----- ------ hast -- ---------

---------- --- meine -------------- -- ----- -------- und ----- ------ ---- -- verwahrt.

Hiob 14,17


18

Hiob 14,18

Doch stürzen ja auch Berge ein und sinken dahin, und Felsen werden von ihrer Stelle weggerückt;

---- stürzen -- ---- Berge --- --- sinken ------ --- Felsen ------ --- ihrer ------ ------------

---- -------- ja ---- ----- --- --- sinken ------ --- ------ ------ von ----- ------ ------------

Hiob 14,18


19

Hiob 14,19

das Wasser höhlt Steine aus, und die Flut schwemmt den Staub der Erde fort: so machst du auch die Hoffnung des Sterblichen zunichte.

--- Wasser ------ ------ aus, --- --- Flut -------- --- Staub --- ---- fort: -- ------ du ---- --- Hoffnung --- ----------- zunichte.

--- ------ höhlt ------ ---- --- --- Flut -------- --- ----- --- Erde ----- -- ------ -- auch --- -------- --- ----------- zunichte.

Hiob 14,19


20

Hiob 14,20

Du überwältigst ihn für immer, und er fährt dahin; du entstellst sein Angesicht und jagst ihn fort.

-- überwältigst --- ---- immer, --- -- fährt ------ -- entstellst ---- --------- und ----- --- fort.

-- -------------- ihn ---- ------ --- -- fährt ------ -- ---------- ---- Angesicht --- ----- --- -----

Hiob 14,20


21

Hiob 14,21

Ob seine Kinder zu Ehren kommen, weiß er nicht, und kommen sie herunter, so merkt er es nicht.

-- seine ------ -- Ehren ------- ----- er ------ --- kommen --- --------- so ----- -- es ------

-- ----- Kinder -- ----- ------- ----- er ------ --- ------ --- herunter, -- ----- -- -- nicht.

Hiob 14,21


22

Hiob 14,22

Sein Fleisch empfindet nur noch seine eigenen Schmerzen, und seine Seele trauert nur über sich selbst!

---- Fleisch --------- --- noch ----- ------- Schmerzen, --- ----- Seele ------- --- über ---- -------

---- ------- empfindet --- ---- ----- ------- Schmerzen, --- ----- ----- ------- nur ----- ---- -------

Hiob 14,22