Deutsch 18-Hiob 016(Schl2000)
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1 | Hiob 16,1 | Und Hiob antwortete und sprach: | --- Hiob ---------- --- sprach: | --- ---- antwortete --- ------- | Hiob 16,1 |
2 | Hiob 16,2 | Dergleichen habe ich oft gehört; ihr seid allesamt leidige Tröster! | ----------- habe --- --- gehört; --- ---- allesamt ------- --------- | ----------- ---- ich --- -------- --- ---- allesamt ------- --------- | Hiob 16,2 |
3 | Hiob 16,3 | Haben die geistreichen Worte ein Ende? Oder was reizte dich, zu antworten? | ----- die ------------ ----- ein ----- ---- was ------ ----- zu ---------- | ----- --- geistreichen ----- --- ----- ---- was ------ ----- -- ---------- | Hiob 16,3 |
4 | Hiob 16,4 | Auch ich könnte reden wie ihr! Befände sich nur eure Seele an meiner Stelle - da wollte ich Worte gegen euch zusammenreimen und den Kopf schütteln über euch! | ---- ich ------- ----- wie ---- -------- sich --- ---- Seele -- ------ Stelle - -- wollte --- ----- gegen ---- -------------- und --- ---- schütteln ----- ----- | ---- --- könnte ----- --- ---- -------- sich --- ---- ----- -- meiner ------ - -- ------ ich ----- ----- ---- -------------- und --- ---- ---------- ----- euch! | Hiob 16,4 |
5 | Hiob 16,5 | Ich wollte euch mit meinem Mund stärken und mit dem Trost meiner Lippen euren Schmerz lindern! | --- wollte ---- --- meinem ---- -------- und --- --- Trost ------ ------ euren ------- -------- | --- ------ euch --- ------ ---- -------- und --- --- ----- ------ Lippen ----- ------- -------- | Hiob 16,5 |
6 | Hiob 16,6 | Wenn ich rede, so wird mein Schmerz nicht gelindert, unterlasse ich es aber, was verliere ich? | ---- ich ----- -- wird ---- ------- nicht ---------- ---------- ich -- ----- was -------- ---- | ---- --- rede, -- ---- ---- ------- nicht ---------- ---------- --- -- aber, --- -------- ---- | Hiob 16,6 |
7 | Hiob 16,7 | Doch jetzt hat Er mich erschöpft. Du hast meinen ganzen Hausstand verwüstet | ---- jetzt --- -- mich ----------- -- hast ------ ------ Hausstand ---------- | ---- ----- hat -- ---- ----------- -- hast ------ ------ --------- ---------- | Hiob 16,7 |
8 | Hiob 16,8 | und hast mich zusammenschrumpfen lassen; zum Zeugen [gegen mich] ist das geworden; auch mein Hinsiechen tritt gegen mich auf, es zeugt mir ins Angesicht. | --- hast ---- ------------------ lassen; --- ------ [gegen ----- --- das --------- ---- mein ---------- ----- gegen ---- ---- es ----- --- ins ---------- | --- ---- mich ------------------ ------- --- ------ [gegen ----- --- --- --------- auch ---- ---------- ----- ----- mich ---- -- ----- --- ins ---------- | Hiob 16,8 |
9 | Hiob 16,9 | Sein Zorn hat mich zerrissen und verfolgt, er knirscht mit den Zähnen gegen mich; mein Feind blickt mich mit scharfem Auge an. | ---- Zorn --- ---- zerrissen --- --------- er -------- --- den ------- ----- mich; ---- ----- blickt ---- --- scharfem ---- --- | ---- ---- hat ---- --------- --- --------- er -------- --- --- ------- gegen ----- ---- ----- ------ mich --- -------- ---- --- | Hiob 16,9 |
10 | Hiob 16,10 | Sie haben ihr Maul gegen mich aufgesperrt, unter Hohnreden schlagen sie mich ins Gesicht; sie rotten sich gegen mich zusammen. | --- haben --- ---- gegen ---- ------------ unter --------- -------- sie ---- --- Gesicht; --- ------ sich ----- ---- zusammen. | --- ----- ihr ---- ----- ---- ------------ unter --------- -------- --- ---- ins -------- --- ------ ---- gegen ---- --------- | Hiob 16,10 |
11 | Hiob 16,11 | Gott hat mich dem Ungerechten preisgegeben und in die Hände der Gottlosen ausgeliefert. | ---- hat ---- --- Ungerechten ------------ --- in --- ------ der --------- ------------- | ---- --- mich --- ----------- ------------ --- in --- ------ --- --------- ausgeliefert. | Hiob 16,11 |
12 | Hiob 16,12 | Sorglos war ich, da hat er mich überfallen; er hat mich beim Nacken ergriffen und zerschmettert und mich als seine Zielscheibe aufgestellt. | ------- war ---- -- hat -- ---- überfallen; -- --- mich ---- ------ ergriffen --- ------------- und ---- --- seine ----------- ------------ | ------- --- ich, -- --- -- ---- überfallen; -- --- ---- ---- Nacken --------- --- ------------- --- mich --- ----- ----------- ------------ | Hiob 16,12 |
13 | Hiob 16,13 | Seine Geschosse umschwirrten mich, er durchbohrte meine Nieren ohne Erbarmen; meine Galle schüttete er auf die Erde aus. | ----- Geschosse ------------ ----- er ----------- ----- Nieren ---- --------- meine ----- ---------- er --- --- Erde ---- | ----- --------- umschwirrten ----- -- ----------- ----- Nieren ---- --------- ----- ----- schüttete -- --- --- ---- aus. | Hiob 16,13 |
14 | Hiob 16,14 | Er zerbrach mich, [riss mir] eine Bresche nach der anderen, lief gegen mich an wie ein Krieger. | -- zerbrach ----- ----- mir] ---- ------- nach --- -------- lief ----- ---- an --- --- Krieger. | -- -------- mich, ----- ---- ---- ------- nach --- -------- ---- ----- mich -- --- --- -------- | Hiob 16,14 |
15 | Hiob 16,15 | Ich habe einen Sack um meine Haut genäht und mein Horn in den Staub gesenkt. | --- habe ----- ---- um ----- ---- genäht --- ---- Horn -- --- Staub -------- | --- ---- einen ---- -- ----- ---- genäht --- ---- ---- -- den ----- -------- | Hiob 16,15 |
16 | Hiob 16,16 | Mein Angesicht ist gerötet vom Weinen, und Todesschatten liegt auf meinen Lidern | ---- Angesicht --- -------- vom ------- --- Todesschatten ----- --- meinen ------ | ---- --------- ist -------- --- ------- --- Todesschatten ----- --- ------ ------ | Hiob 16,16 |
17 | Hiob 16,17 | - obwohl kein Unrecht an meinen Händen klebt und mein Gebet lauter ist! | - obwohl ---- ------- an ------ ------- klebt --- ---- Gebet ------ ---- | - ------ kein ------- -- ------ ------- klebt --- ---- ----- ------ ist! | Hiob 16,17 |
18 | Hiob 16,18 | O Erde, decke mein Blut nicht zu, und mein Geschrei komme nicht zur Ruhe! | - Erde, ----- ---- Blut ----- --- und ---- -------- komme ----- --- Ruhe! | - ----- decke ---- ---- ----- --- und ---- -------- ----- ----- zur ----- | Hiob 16,18 |
19 | Hiob 16,19 | Aber auch jetzt noch, siehe, ist mein Zeuge im Himmel und mein Bürge in der Höhe! | ---- auch ----- ----- siehe, --- ---- Zeuge -- ------ und ---- ------ in --- ------ | ---- ---- jetzt ----- ------ --- ---- Zeuge -- ------ --- ---- Bürge -- --- ------ | Hiob 16,19 |
20 | Hiob 16,20 | Meine Freunde spotten über mich; aber mein Auge blickt unter Tränen auf zu Gott, | ----- Freunde ------- ----- mich; ---- ---- Auge ------ ----- Tränen --- -- Gott, | ----- ------- spotten ----- ----- ---- ---- Auge ------ ----- ------- --- zu ----- | Hiob 16,20 |
21 | Hiob 16,21 | dass er dem Mann Recht verschaffe vor Gott und dem Menschenkind vor seinem Nächsten. | ---- er --- ---- Recht ---------- --- Gott --- --- Menschenkind --- ------ Nächsten. | ---- -- dem ---- ----- ---------- --- Gott --- --- ------------ --- seinem ---------- | Hiob 16,21 |
22 | Hiob 16,22 | Denn es kommen nur noch wenige Jahre, und ich gehe den Weg ohne Wiederkehr. | ---- es ------ --- noch ------ ------ und --- ---- den --- ---- Wiederkehr. | ---- -- kommen --- ---- ------ ------ und --- ---- --- --- ohne ----------- | Hiob 16,22 |