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Deutsch 18-Hiob 020(Schl2000)

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1

Hiob 20,1

Da antwortete Zophar, der Naamatiter, und sprach:

-- antwortete ------- --- Naamatiter, --- -------

-- ---------- Zophar, --- ----------- --- -------

Hiob 20,1


2

Hiob 20,2

Darum veranlassen mich meine erregten Gedanken zu einer Antwort, und deswegen drängt es mich [zu reden].

----- veranlassen ---- ----- erregten -------- -- einer -------- --- deswegen ------- -- mich --- -------

----- ----------- mich ----- -------- -------- -- einer -------- --- -------- ------- es ---- --- -------

Hiob 20,2


3

Hiob 20,3

Eine Zurechtweisung zu meiner Schande musste ich hören; aber mein Geist treibt mich zu antworten um meiner Einsicht willen:

---- Zurechtweisung -- ------ Schande ------ --- hören; ---- ---- Geist ------ ---- zu --------- -- meiner -------- -------

---- -------------- zu ------ ------- ------ --- hören; ---- ---- ----- ------ mich -- --------- -- ------ Einsicht -------

Hiob 20,3


4

Hiob 20,4

Hast du dies nicht von alter Zeit her erkannt? Seitdem der Mensch auf die Erde gesetzt wurde,

---- du ---- ----- von ----- ---- her -------- ------- der ------ --- die ---- ------- wurde,

---- -- dies ----- --- ----- ---- her -------- ------- --- ------ auf --- ---- ------- ------

Hiob 20,4


5

Hiob 20,5

ist das Frohlocken der Gottlosen kurz, und die Freude der Frevler währt nur einen Augenblick.

--- das ---------- --- Gottlosen ----- --- die ------ --- Frevler ------ --- einen -----------

--- --- Frohlocken --- --------- ----- --- die ------ --- ------- ------ nur ----- -----------

Hiob 20,5


6

Hiob 20,6

Wenn auch sein Stolz bis zum Himmel reichte und sein Haupt die Wolken berührte,

---- auch ---- ----- bis --- ------ reichte --- ---- Haupt --- ------ berührte,

---- ---- sein ----- --- --- ------ reichte --- ---- ----- --- Wolken ----------

Hiob 20,6


7

Hiob 20,7

so geht er doch, gleich seinem Kot, auf ewig unter; die ihn gesehen haben, werden sagen: Wo ist er?

-- geht -- ----- gleich ------ ---- auf ---- ------ die --- ------- haben, ------ ------ Wo --- ---

-- ---- er ----- ------ ------ ---- auf ---- ------ --- --- gesehen ------ ------ ------ -- ist ---

Hiob 20,7


8

Hiob 20,8

Wie ein Traum verfliegt er, man wird ihn nicht mehr finden; er wird weggescheucht wie ein Nachtgesicht.

--- ein ----- --------- er, --- ---- ihn ----- ---- finden; -- ---- weggescheucht --- --- Nachtgesicht.

--- --- Traum --------- --- --- ---- ihn ----- ---- ------- -- wird ------------- --- --- -------------

Hiob 20,8


9

Hiob 20,9

Das Auge, das ihn sah, sieht ihn nicht wieder, und erblickt ihn nicht mehr an seinem Ort.

--- Auge, --- --- sah, ----- --- nicht ------- --- erblickt --- ----- mehr -- ------ Ort.

--- ----- das --- ---- ----- --- nicht ------- --- -------- --- nicht ---- -- ------ ----

Hiob 20,9


10

Hiob 20,10

Seine Söhne müssen die Armen entschädigen, und seine Hände sein Vermögen wieder herausgeben.

----- Söhne ------- --- Armen -------------- --- seine ------ ---- Vermögen ------ ------------

----- ------ müssen --- ----- -------------- --- seine ------ ---- --------- ------ herausgeben.

Hiob 20,10


11

Hiob 20,11

Seine Gebeine waren voller Jugendkraft: die liegt nun mit ihm im Staub.

----- Gebeine ----- ------ Jugendkraft: --- ----- nun --- --- im ------

----- ------- waren ------ ------------ --- ----- nun --- --- -- ------

Hiob 20,11


12

Hiob 20,12

Ist das Böse noch so süß in seinem Mund, dass er es unter seiner Zunge birgt,

--- das ----- ---- so ----- -- seinem ----- ---- er -- ----- seiner ----- ------

--- --- Böse ---- -- ----- -- seinem ----- ---- -- -- unter ------ ----- ------

Hiob 20,12


13

Hiob 20,13

dass er es hegt und nicht lassen kann und an seinem Gaumen festhält:

---- er -- ---- und ----- ------ kann --- -- seinem ------ ----------

---- -- es ---- --- ----- ------ kann --- -- ------ ------ festhält:

Hiob 20,13


14

Hiob 20,14

so verwandelt sich doch seine Speise in seinen Eingeweiden, wird zu Schlangengift in seinem Inneren.

-- verwandelt ---- ---- seine ------ -- seinen ------------ ---- zu ------------- -- seinem --------

-- ---------- sich ---- ----- ------ -- seinen ------------ ---- -- ------------- in ------ --------

Hiob 20,14


15

Hiob 20,15

Den Reichtum, den er verschlungen hat, muss er wieder von sich geben; Gott treibt es ihm aus seinem Bauch heraus.

--- Reichtum, --- -- verschlungen ---- ---- er ------ --- sich ------ ---- treibt -- --- aus ------ ----- heraus.

--- --------- den -- ------------ ---- ---- er ------ --- ---- ------ Gott ------ -- --- --- seinem ----- -------

Hiob 20,15


16

Hiob 20,16

Schlangengift hat er gesaugt: darum wird ihn die Zunge der Otter töten.

------------- hat -- -------- darum ---- --- die ----- --- Otter -------

------------- --- er -------- ----- ---- --- die ----- --- ----- -------

Hiob 20,16


17

Hiob 20,17

Er wird seine Lust nicht sehen an den Bächen, an den Strömen von Honig und von Milch.

-- wird ----- ---- nicht ----- -- den -------- -- den -------- --- Honig --- --- Milch.

-- ---- seine ---- ----- ----- -- den -------- -- --- -------- von ----- --- --- ------

Hiob 20,17


18

Hiob 20,18

Den Gewinn muss er zurückgeben, und er kann ihn nicht verschlingen; an dem Reichtum, den er erwarb, wird er nicht froh;

--- Gewinn ---- -- zurückgeben, --- -- kann --- ----- verschlingen; -- --- Reichtum, --- -- erwarb, ---- -- nicht -----

--- ------ muss -- ------------- --- -- kann --- ----- ------------- -- dem --------- --- -- ------- wird -- ----- -----

Hiob 20,18


19

Hiob 20,19

denn er hat Arme misshandelt und sie liegen lassen, hat ein Haus beraubt anstatt gebaut.

---- er --- ---- misshandelt --- --- liegen ------- --- ein ---- ------- anstatt -------

---- -- hat ---- ----------- --- --- liegen ------- --- --- ---- beraubt ------- -------

Hiob 20,19


20

Hiob 20,20

Sein Bauch kannte keine Ruhe; vor seiner Begehrlichkeit blieb nichts verschont.

---- Bauch ------ ----- Ruhe; --- ------ Begehrlichkeit ----- ------ verschont.

---- ----- kannte ----- ----- --- ------ Begehrlichkeit ----- ------ ----------

Hiob 20,20


21

Hiob 20,21

Nichts entging seiner Fressgier, darum wird auch sein Gut nicht Bestand haben.

------ entging ------ ---------- darum ---- ---- sein --- ----- Bestand ------

------ ------- seiner ---------- ----- ---- ---- sein --- ----- ------- ------

Hiob 20,21


22

Hiob 20,22

Mitten in seinem öœberfluss wird er in Not geraten; alle Hände der Unglücklichen kommen über ihn.

------ in ------ ------------ wird -- -- Not -------- ---- Hände --- -------------- kommen ----- ----

------ -- seinem ------------ ---- -- -- Not -------- ---- ------ --- Unglücklichen ------ ----- ----

Hiob 20,22


23

Hiob 20,23

Es wird geschehen, während er seinen Bauch noch füllt, wird Er die Glut Seines Zornes über ihn senden und sie auf ihn regnen lassen, in seine Eingeweide hinein.

-- wird ---------- -------- er ------ ----- noch ------- ---- Er --- ---- Seines ------ ----- ihn ------ --- sie --- --- regnen ------- -- seine ---------- -------

-- ---- geschehen, -------- -- ------ ----- noch ------- ---- -- --- Glut ------ ------ ----- --- senden --- --- --- --- regnen ------- -- ----- ---------- hinein.

Hiob 20,23


24

Hiob 20,24

Flieht er vor eisernen Waffen, so wird ihn der eherne Bogen durchbohren.

------ er --- -------- Waffen, -- ---- ihn --- ------ Bogen ------------

------ -- vor -------- ------- -- ---- ihn --- ------ ----- ------------

Hiob 20,24


25

Hiob 20,25

Er zieht [an dem Pfeil], und er kommt aus dem Rücken hervor; blitzend fährt er aus seiner Galle, Todesschrecken kommen über ihn.

-- zieht --- --- Pfeil], --- -- kommt --- --- Rücken ------- -------- fährt -- --- seiner ------ -------------- kommen ----- ----

-- ----- [an --- ------- --- -- kommt --- --- ------- ------- blitzend ------ -- --- ------ Galle, -------------- ------ ----- ----

Hiob 20,25


26

Hiob 20,26

Alle Finsternis ist aufgespart für seine Schätze; ihn wird ein Feuer verzehren, das nicht angefacht wird; übel wird es dem ergehen, der in seinem Zelt übrig geblieben ist.

---- Finsternis --- ---------- für ----- --------- ihn ---- --- Feuer ---------- --- nicht --------- ----- übel ---- -- dem -------- --- in ------ ---- übrig --------- ----

---- ---------- ist ---------- ---- ----- --------- ihn ---- --- ----- ---------- das ----- --------- ----- ----- wird -- --- -------- --- in ------ ---- ------ --------- ist.

Hiob 20,26


27

Hiob 20,27

Der Himmel wird seine Schuld offenbaren und die Erde sich gegen ihn empören.

--- Himmel ---- ----- Schuld ---------- --- die ---- ---- gegen --- ---------

--- ------ wird ----- ------ ---------- --- die ---- ---- ----- --- empören.

Hiob 20,27


28

Hiob 20,28

Der Ertrag seines Hauses fährt dahin, muss zerrinnen am Tag Seines Zornes.

--- Ertrag ------ ------ fährt ------ ---- zerrinnen -- --- Seines -------

--- ------ seines ------ ------ ------ ---- zerrinnen -- --- ------ -------

Hiob 20,28


29

Hiob 20,29

Das ist das Teil des gottlosen Menschen von Gott, das Erbe, das Gott ihm zugesprochen hat!

--- ist --- ---- des --------- -------- von ----- --- Erbe, --- ---- ihm ------------ ----

--- --- das ---- --- --------- -------- von ----- --- ----- --- Gott --- ------------ ----

Hiob 20,29