Deutsch 18-Hiob 032(Schl2000)
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1 | Hiob 32,1 | Und jene drei Männer hörten auf, Hiob zu antworten, weil er in seinen Augen gerecht war. | --- jene ---- ------- hörten ---- ---- zu ---------- ---- er -- ------ Augen ------- ---- | --- ---- drei ------- ------- ---- ---- zu ---------- ---- -- -- seinen ----- ------- ---- | Hiob 32,1 |
2 | Hiob 32,2 | Da entbrannte der Zorn Elihus, des Sohnes Baracheels, des Busiters, aus dem Geschlecht Ram; über Hiob entbrannte sein Zorn, weil er meinte, er sei Gott gegenüber im Recht; | -- entbrannte --- ---- Elihus, --- ------ Baracheels, --- --------- aus --- ---------- Ram; ----- ---- entbrannte ---- ----- weil -- ------- er --- ---- gegenüber -- ------ | -- ---------- der ---- ------- --- ------ Baracheels, --- --------- --- --- Geschlecht ---- ----- ---- ---------- sein ----- ---- -- ------- er --- ---- ---------- -- Recht; | Hiob 32,2 |
3 | Hiob 32,3 | über seine drei Freunde aber entbrannte sein Zorn, weil sie keine Antwort fanden und Hiob doch verurteilten. | ----- seine ---- ------- aber ---------- ---- Zorn, ---- --- keine ------- ------ und ---- ---- verurteilten. | ----- ----- drei ------- ---- ---------- ---- Zorn, ---- --- ----- ------- fanden --- ---- ---- ------------- | Hiob 32,3 |
4 | Hiob 32,4 | Elihu aber hatte mit seiner Rede an Hiob gewartet; denn jene waren älter als er. | ----- aber ----- --- seiner ---- -- Hiob --------- ---- jene ----- ------ als --- | ----- ---- hatte --- ------ ---- -- Hiob --------- ---- ---- ----- älter --- --- | Hiob 32,4 |
5 | Hiob 32,5 | Als aber Elihu sah, dass im Mund jener drei Männer keine Antwort mehr war, da entbrannte sein Zorn. | --- aber ----- ---- dass -- ---- jener ---- ------- keine ------- ---- war, -- ---------- sein ----- | --- ---- Elihu ---- ---- -- ---- jener ---- ------- ----- ------- mehr ---- -- ---------- ---- Zorn. | Hiob 32,5 |
6 | Hiob 32,6 | Und Elihu, der Sohn Baracheels, der Busiter, ergriff das Wort und sprach: Jung bin ich an Jahren, ihr aber seid grau; darum scheute und fürchtete ich mich, euch mein Wissen zu verkünden. | --- Elihu, --- ---- Baracheels, --- -------- ergriff --- ---- und ------- ---- bin --- -- Jahren, --- ---- seid ----- ----- scheute --- ---------- ich ----- ---- mein ------ -- verkünden. | --- ------ der ---- ----------- --- -------- ergriff --- ---- --- ------- Jung --- --- -- ------- ihr ---- ---- ----- ----- scheute --- ---------- --- ----- euch ---- ------ -- ----------- | Hiob 32,6 |
7 | Hiob 32,7 | Ich dachte: Die Betagten sollen reden und die Bejahrten Weisheit lehren! | --- dachte: --- -------- sollen ----- --- die --------- -------- lehren! | --- ------- Die -------- ------ ----- --- die --------- -------- ------- | Hiob 32,7 |
8 | Hiob 32,8 | Aber der Geist ist es im Menschen, und der Odem des Allmächtigen, der sie verständig macht. | ---- der ----- --- es -- --------- und --- ---- des -------------- --- sie ----------- ------ | ---- --- Geist --- -- -- --------- und --- ---- --- -------------- der --- ----------- ------ | Hiob 32,8 |
9 | Hiob 32,9 | Nicht alle Angesehenen sind weise, und nicht alle Alten verstehen sich aufs Recht. | ----- alle ----------- ---- weise, --- ----- alle ----- --------- sich ---- ------ | ----- ---- Angesehenen ---- ------ --- ----- alle ----- --------- ---- ---- Recht. | Hiob 32,9 |
10 | Hiob 32,10 | Darum sage ich: Hört auf mich, so will ich mein Wissen verkünden, ja, auch ich! | ----- sage ---- ----- auf ----- -- will --- ---- Wissen ----------- --- auch ---- | ----- ---- ich: ----- --- ----- -- will --- ---- ------ ----------- ja, ---- ---- | Hiob 32,10 |
11 | Hiob 32,11 | Siehe, ich habe eure Reden abgewartet, auf eure Einsichten gehört, bis ihr die [rechten] Worte finden würdet; | ------ ich ---- ---- Reden ----------- --- eure ---------- -------- bis --- --- [rechten] ----- ------ würdet; | ------ --- habe ---- ----- ----------- --- eure ---------- -------- --- --- die --------- ----- ------ -------- | Hiob 32,11 |
12 | Hiob 32,12 | und ich gab aufmerksam auf euch Acht - aber siehe, da war keiner, der Hiob widerlegt hätte, der seine Reden beantwortet hätte! | --- ich --- ---------- auf ---- ---- - ---- ------ da --- ------- der ---- --------- hätte, --- ----- Reden ----------- ------- | --- --- gab ---------- --- ---- ---- - ---- ------ -- --- keiner, --- ---- --------- ------- der ----- ----- ----------- ------- | Hiob 32,12 |
13 | Hiob 32,13 | Sagt nur ja nicht: »Wir haben die Weisheit gefunden: Gott wird ihn wegfegen, nicht ein Mensch!« | ---- nur -- ------ »Wir ----- --- Weisheit --------- ---- wird --- --------- nicht --- --------- | ---- --- ja ------ ----- ----- --- Weisheit --------- ---- ---- --- wegfegen, ----- --- --------- | Hiob 32,13 |
14 | Hiob 32,14 | Er hat seine Worte nicht an mich gerichtet, so will ich ihm auch nicht mit euren Worten antworten. | -- hat ----- ----- nicht -- ---- gerichtet, -- ---- ich --- ---- nicht --- ----- Worten ---------- | -- --- seine ----- ----- -- ---- gerichtet, -- ---- --- --- auch ----- --- ----- ------ antworten. | Hiob 32,14 |
15 | Hiob 32,15 | Sie sind bestürzt, sie geben keine Antwort mehr, die Worte sind ihnen ausgegangen! | --- sind ---------- --- geben ----- ------- mehr, --- ----- sind ----- ------------ | --- ---- bestürzt, --- ----- ----- ------- mehr, --- ----- ---- ----- ausgegangen! | Hiob 32,15 |
16 | Hiob 32,16 | Und ich sollte warten, weil sie nichts sagen, weil sie dastehen und nicht mehr antworten? | --- ich ------ ------- weil --- ------ sagen, ---- --- dastehen --- ----- mehr ---------- | --- --- sollte ------- ---- --- ------ sagen, ---- --- -------- --- nicht ---- ---------- | Hiob 32,16 |
17 | Hiob 32,17 | So will auch ich nun meinen Teil erwidern und mein Wissen verkünden, ja, auch ich! | -- will ---- --- nun ------ ---- erwidern --- ---- Wissen ----------- --- auch ---- | -- ---- auch --- --- ------ ---- erwidern --- ---- ------ ----------- ja, ---- ---- | Hiob 32,17 |
18 | Hiob 32,18 | Denn ich bin voll von Worten, und der Geist, der in mir ist, drängt mich dazu. | ---- ich --- ---- von ------- --- der ------ --- in --- ---- drängt ---- ----- | ---- --- bin ---- --- ------- --- der ------ --- -- --- ist, ------- ---- ----- | Hiob 32,18 |
19 | Hiob 32,19 | Siehe, mein Inneres ist wie Wein, der nicht geöffnet wurde; wie [Wein], der selbst aus neuen Schläuchen hervorbricht. | ------ mein ------- --- wie ----- --- nicht --------- ------ wie ------- --- selbst --- ----- Schläuchen ------------- | ------ ---- Inneres --- --- ----- --- nicht --------- ------ --- ------- der ------ --- ----- ----------- hervorbricht. | Hiob 32,19 |
20 | Hiob 32,20 | Ich will reden, damit ich Luft bekomme; ich will meine Lippen auftun und antworten. | --- will ------ ----- ich ---- -------- ich ---- ----- Lippen ------ --- antworten. | --- ---- reden, ----- --- ---- -------- ich ---- ----- ------ ------ und ---------- | Hiob 32,20 |
21 | Hiob 32,21 | Ich will aber für niemand Partei ergreifen und keinem Menschen schmeicheln; | --- will ---- ---- niemand ------ --------- und ------ -------- schmeicheln; | --- ---- aber ---- ------- ------ --------- und ------ -------- ------------ | Hiob 32,21 |
22 | Hiob 32,22 | denn ich kann nicht schmeicheln - leicht könnte mein Schöpfer mich sonst wegraffen! | ---- ich ---- ----- schmeicheln - ------ könnte ---- --------- mich ----- ---------- | ---- --- kann ----- ----------- - ------ könnte ---- --------- ---- ----- wegraffen! | Hiob 32,22 |