Deutsch 18-Hiob 036(Schl2000)
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1 | Hiob 36,1 | Und Elihu fuhr fort und sprach: | --- Elihu ---- ---- und ------- | --- ----- fuhr ---- --- ------- | Hiob 36,1 |
2 | Hiob 36,2 | Gedulde dich noch ein wenig, so will ich es dir mitteilen; ich habe noch mehr Worte für Gott. | ------- dich ---- --- wenig, -- ---- ich -- --- mitteilen; --- ---- noch ---- ----- für ----- | ------- ---- noch --- ------ -- ---- ich -- --- ---------- --- habe ---- ---- ----- ---- Gott. | Hiob 36,2 |
3 | Hiob 36,3 | Ich will mein Wissen weither holen und meinem Schöpfer Gerechtigkeit widerfahren lassen! | --- will ---- ------ weither ----- --- meinem --------- ------------- widerfahren ------- | --- ---- mein ------ ------- ----- --- meinem --------- ------------- ----------- ------- | Hiob 36,3 |
4 | Hiob 36,4 | Denn wahrlich, meine Reden sind keine Lügen; vor dir steht ein Mann mit vollkommener Erkenntnis. | ---- wahrlich, ----- ----- sind ----- ------- vor --- ----- ein ---- --- vollkommener ----------- | ---- --------- meine ----- ---- ----- ------- vor --- ----- --- ---- mit ------------ ----------- | Hiob 36,4 |
5 | Hiob 36,5 | Siehe, Gott ist mächtig, doch verachtet er niemand; groß ist die Kraft seines Herzens. | ------ Gott --- --------- doch --------- -- niemand; ----- --- die ----- ------ Herzens. | ------ ---- ist --------- ---- --------- -- niemand; ----- --- --- ----- seines -------- | Hiob 36,5 |
6 | Hiob 36,6 | Den Gottlosen erhält er nicht am Leben, aber den Elenden schafft er Recht. | --- Gottlosen ------- -- nicht -- ------ aber --- ------- schafft -- ------ | --- --------- erhält -- ----- -- ------ aber --- ------- ------- -- Recht. | Hiob 36,6 |
7 | Hiob 36,7 | Er wendet seine Augen nicht ab von dem Gerechten, und er setzt sie auf ewig mit Königen auf den Thron, damit sie herrschen. | -- wendet ----- ----- nicht -- --- dem ---------- --- er ----- --- auf ---- --- Königen --- --- Thron, ----- --- herrschen. | -- ------ seine ----- ----- -- --- dem ---------- --- -- ----- sie --- ---- --- -------- auf --- ------ ----- --- herrschen. | Hiob 36,7 |
8 | Hiob 36,8 | Sind sie aber in Fesseln gebunden, in Banden des Elends gefangen, | ---- sie ---- -- Fesseln --------- -- Banden --- ------ gefangen, | ---- --- aber -- ------- --------- -- Banden --- ------ --------- | Hiob 36,8 |
9 | Hiob 36,9 | so hält er ihnen ihre Taten und ihre öœbertretungen vor, denn sie haben sich überhoben; | -- hält -- ----- ihre ----- --- ihre ---------------- ---- denn --- ----- sich ----------- | -- ----- er ----- ---- ----- --- ihre ---------------- ---- ---- --- haben ---- ----------- | Hiob 36,9 |
10 | Hiob 36,10 | er öffnet ihr Ohr der Zurechtweisung und befiehlt ihnen, sich von der Bosheit abzukehren. | -- öffnet --- --- der -------------- --- befiehlt ------ ---- von --- ------- abzukehren. | -- ------- ihr --- --- -------------- --- befiehlt ------ ---- --- --- Bosheit ----------- | Hiob 36,10 |
11 | Hiob 36,11 | Wenn sie dann gehorchen und sich unterwerfen, so werden sie ihre Tage in Glück vollenden und ihre Jahre in Wohlergehen. | ---- sie ---- --------- und ---- ------------ so ------ --- ihre ---- -- Glück --------- --- ihre ----- -- Wohlergehen. | ---- --- dann --------- --- ---- ------------ so ------ --- ---- ---- in ------ --------- --- ---- Jahre -- ------------ | Hiob 36,11 |
12 | Hiob 36,12 | Gehorchen sie aber nicht, so kommen sie um durchs Schwert und sterben dahin in ihrem Unverstand. | --------- sie ---- ------ so ------ --- um ------ ------- und ------- ----- in ----- ----------- | --------- --- aber ------ -- ------ --- um ------ ------- --- ------- dahin -- ----- ----------- | Hiob 36,12 |
13 | Hiob 36,13 | Die aber ein gottloses Herz haben, häufen Zorn auf; sie rufen nicht um Hilfe, wenn er sie gefesselt hat. | --- aber --- --------- Herz ------ ------- Zorn ---- --- rufen ----- -- Hilfe, ---- -- sie --------- ---- | --- ---- ein --------- ---- ------ ------- Zorn ---- --- ----- ----- um ------ ---- -- --- gefesselt ---- | Hiob 36,13 |
14 | Hiob 36,14 | Ihre Seele stirbt in der Jugend, und ihr Leben unter den Hurern. | ---- Seele ------ -- der ------- --- ihr ----- ----- den ------- | ---- ----- stirbt -- --- ------- --- ihr ----- ----- --- ------- | Hiob 36,14 |
15 | Hiob 36,15 | Den Gedemütigten aber rettet er durch die Demütigung und öffnet durch die Not sein Ohr. | --- Gedemütigten ---- ------ er ----- --- Demütigung --- ------- durch --- --- sein ---- | --- ------------- aber ------ -- ----- --- Demütigung --- ------- ----- --- Not ---- ---- | Hiob 36,15 |
16 | Hiob 36,16 | Und auch dich führt er aus dem Rachen der Bedrängnis; dein Platz wird uneingeschränkte Weite sein, und dein Tisch bereitet mit reicher, guter Speise. | --- auch ---- ------ er --- --- Rachen --- ------------ dein ----- ---- uneingeschränkte ----- ----- und ---- ----- bereitet --- -------- guter ------- | --- ---- dich ------ -- --- --- Rachen --- ------------ ---- ----- wird ----------------- ----- ----- --- dein ----- -------- --- -------- guter ------- | Hiob 36,16 |
17 | Hiob 36,17 | Bist du aber vom Urteil des Gottlosen erfüllt, so werden Urteil und Gericht dich treffen. | ---- du ---- --- Urteil --- --------- erfüllt, -- ------ Urteil --- ------- dich -------- | ---- -- aber --- ------ --- --------- erfüllt, -- ------ ------ --- Gericht ---- -------- | Hiob 36,17 |
18 | Hiob 36,18 | Der Zorn aber verleite dich ja nicht zur Lästerung, und die Menge des Lösegeldes besteche dich nicht! | --- Zorn ---- -------- dich -- ----- zur ----------- --- die ----- --- Lösegeldes -------- ---- nicht! | --- ---- aber -------- ---- -- ----- zur ----------- --- --- ----- des ----------- -------- ---- ------ | Hiob 36,18 |
19 | Hiob 36,19 | Wird dich etwa dein Hilferuf aus der Bedrängnis herausführen und alle deine mühevollen Anstrengungen? | ---- dich ---- ---- Hilferuf --- --- Bedrängnis ------------- --- alle ----- ----------- Anstrengungen? | ---- ---- etwa ---- -------- --- --- Bedrängnis ------------- --- ---- ----- mühevollen -------------- | Hiob 36,19 |
20 | Hiob 36,20 | Sehne dich nicht nach der Nacht, wenn Völker untergehen werden! | ----- dich ----- ---- der ------ ---- Völker ---------- ------- | ----- ---- nicht ---- --- ------ ---- Völker ---------- ------- | Hiob 36,20 |
21 | Hiob 36,21 | Hüte dich, wende dich nicht zum Unrecht, denn dies hast du dem Elend vorgezogen! | ----- dich, ----- ---- nicht --- -------- denn ---- ---- du --- ----- vorgezogen! | ----- ----- wende ---- ----- --- -------- denn ---- ---- -- --- Elend ----------- | Hiob 36,21 |
22 | Hiob 36,22 | Siehe, Gott ist erhaben in seiner Kraft; wer ist ein Lehrer wie er? | ------ Gott --- ------- in ------ ------ wer --- --- Lehrer --- --- | ------ ---- ist ------- -- ------ ------ wer --- --- ------ --- er? | Hiob 36,22 |
23 | Hiob 36,23 | Wer will ihn zur Rede stellen über seinen Weg, und wer will zu ihm sagen: Du hast Unrecht getan? | --- will --- --- Rede ------- ----- seinen ---- --- wer ---- -- ihm ------ -- hast ------- ------ | --- ---- ihn --- ---- ------- ----- seinen ---- --- --- ---- zu --- ------ -- ---- Unrecht ------ | Hiob 36,23 |
24 | Hiob 36,24 | Denke daran, sein Tun zu erheben, das Menschen besingen. | ----- daran, ---- --- zu -------- --- Menschen --------- | ----- ------ sein --- -- -------- --- Menschen --------- | Hiob 36,24 |
25 | Hiob 36,25 | Alle Menschen schauen es an; der Sterbliche erblickt es von ferne. | ---- Menschen ------- -- an; --- ---------- erblickt -- --- ferne. | ---- -------- schauen -- --- --- ---------- erblickt -- --- ------ | Hiob 36,25 |
26 | Hiob 36,26 | Siehe, wie erhaben ist Gott! Wir aber verstehen ihn nicht; die Zahl seiner Jahre ist unerforschlich. | ------ wie ------- --- Gott! --- ---- verstehen --- ------ die ---- ------ Jahre --- --------------- | ------ --- erhaben --- ----- --- ---- verstehen --- ------ --- ---- seiner ----- --- --------------- | Hiob 36,26 |
27 | Hiob 36,27 | Denn er zieht Wassertropfen herauf; sie sickern als Regen für seinen Wasserstrom herab, | ---- er ----- ------------- herauf; --- ------- als ----- ---- seinen ----------- ------ | ---- -- zieht ------------- ------- --- ------- als ----- ---- ------ ----------- herab, | Hiob 36,27 |
28 | Hiob 36,28 | den die Wolken niederrieseln, auf viele Menschen herabtropfen lassen. | --- die ------ -------------- auf ----- -------- herabtropfen ------- | --- --- Wolken -------------- --- ----- -------- herabtropfen ------- | Hiob 36,28 |
29 | Hiob 36,29 | Versteht man auch das Ausspannen der Wolken und den Donnerschall seines Gezelts? | -------- man ---- --- Ausspannen --- ------ und --- ------------ seines -------- | -------- --- auch --- ---------- --- ------ und --- ------------ ------ -------- | Hiob 36,29 |
30 | Hiob 36,30 | Siehe, er breitet sein Licht darüber aus und bedeckt die Gründe des Meeres; | ------ er ------- ---- Licht -------- --- und ------- --- Gründe --- ------- | ------ -- breitet ---- ----- -------- --- und ------- --- ------- --- Meeres; | Hiob 36,30 |
31 | Hiob 36,31 | denn damit richtet er die Völker, und gibt Speise die Fülle. | ---- damit ------- -- die -------- --- gibt ------ --- Fülle. | ---- ----- richtet -- --- -------- --- gibt ------ --- ------- | Hiob 36,31 |
32 | Hiob 36,32 | Seine Hände umhüllt er mit dem Blitzstrahl und gebietet ihm, zu treffen. | ----- Hände -------- -- mit --- ----------- und -------- ---- zu -------- | ----- ------ umhüllt -- --- --- ----------- und -------- ---- -- -------- | Hiob 36,32 |
33 | Hiob 36,33 | Sein Donnerruf kündigt ihn an, sogar das Vieh sein Heranziehen. | ---- Donnerruf -------- --- an, ----- --- Vieh ---- ------------ | ---- --------- kündigt --- --- ----- --- Vieh ---- ------------ | Hiob 36,33 |