Deutsch 18-Hiob 041(Schl2000)
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1 | Hiob 41,1 | Siehe, die Hoffnung auf ihn wird getäuscht; wird man nicht schon bei seinem Anblick hingestreckt? | ------ die -------- --- ihn ---- ----------- wird --- ----- schon --- ------ Anblick ------------- | ------ --- Hoffnung --- --- ---- ----------- wird --- ----- ----- --- seinem ------- ------------- | Hiob 41,1 |
2 | Hiob 41,2 | Niemand ist so tollkühn, dass er ihn reizen möchte; wer aber kann vor mir bestehen? | ------- ist -- ---------- dass -- --- reizen -------- --- aber ---- --- mir --------- | ------- --- so ---------- ---- -- --- reizen -------- --- ---- ---- vor --- --------- | Hiob 41,2 |
3 | Hiob 41,3 | Wer hat mir zuvor gegeben, dass ich ihm vergelten sollte? Alles, was unter dem ganzen Himmel ist, gehört mir! | --- hat --- ----- gegeben, ---- --- ihm --------- ------- Alles, --- ----- dem ------ ------ ist, ------- ---- | --- --- mir ----- -------- ---- --- ihm --------- ------- ------ --- unter --- ------ ------ ---- gehört ---- | Hiob 41,3 |
4 | Hiob 41,4 | Ich will von seinen Gliedern nicht schweigen, sondern reden von seiner Kraftfülle und von der Schönheit seines Baus. | --- will --- ------ Gliedern ----- ---------- sondern ----- --- seiner ----------- --- von --- ---------- seines ----- | --- ---- von ------ -------- ----- ---------- sondern ----- --- ------ ----------- und --- --- ---------- ------ Baus. | Hiob 41,4 |
5 | Hiob 41,5 | Wer kann sein Gewand aufdecken, und wer greift ihm in die Doppelreihe seiner Zähne? | --- kann ---- ------ aufdecken, --- --- greift --- -- die ----------- ------ Zähne? | --- ---- sein ------ ---------- --- --- greift --- -- --- ----------- seiner ------- | Hiob 41,5 |
6 | Hiob 41,6 | Wer öffnet die Tore seines Rachens? Rings um seine Zähne lagert Schrecken. | --- öffnet --- ---- seines -------- ----- um ----- ------ lagert ---------- | --- ------- die ---- ------ -------- ----- um ----- ------ ------ ---------- | Hiob 41,6 |
7 | Hiob 41,7 | Prächtig sind seine starken Schilder, fest zusammengeschlossen und versiegelt; | --------- sind ----- ------- Schilder, ---- ------------------- und ----------- | --------- ---- seine ------- --------- ---- ------------------- und ----------- | Hiob 41,7 |
8 | Hiob 41,8 | einer fügt sich an den anderen, so dass kein Luftzug dazwischenkommt; | ----- fügt ---- -- den -------- -- dass ---- ------- dazwischenkommt; | ----- ----- sich -- --- -------- -- dass ---- ------- ---------------- | Hiob 41,8 |
9 | Hiob 41,9 | sie hängen fest zusammen, sie greifen ineinander und trennen sich nicht. | --- hängen ---- --------- sie ------- ---------- und ------- ---- nicht. | --- ------- fest --------- --- ------- ---------- und ------- ---- ------ | Hiob 41,9 |
10 | Hiob 41,10 | Sein Niesen lässt Licht aufleuchten, und seine Augen sind wie die Strahlen der Morgenröte. | ---- Niesen ------ ----- aufleuchten, --- ----- Augen ---- --- die -------- --- Morgenröte. | ---- ------ lässt ----- ------------ --- ----- Augen ---- --- --- -------- der ------------ | Hiob 41,10 |
11 | Hiob 41,11 | Aus seinem Rachen schießen Fackeln; Feuerfunken sprühen aus ihm heraus. | --- seinem ------ --------- Fackeln; ----------- -------- aus --- ------- | --- ------ Rachen --------- -------- ----------- -------- aus --- ------- | Hiob 41,11 |
12 | Hiob 41,12 | Aus seinen Nüstern kommt Rauch hervor wie aus einem siedenden Topf und einem Kessel. | --- seinen -------- ----- Rauch ------ --- aus ----- --------- Topf --- ----- Kessel. | --- ------ Nüstern ----- ----- ------ --- aus ----- --------- ---- --- einem ------- | Hiob 41,12 |
13 | Hiob 41,13 | Sein Hauch entzündet Kohlen, eine Flamme schießt aus seinem Rachen; | ---- Hauch ---------- ------- eine ------ -------- aus ------ ------- | ---- ----- entzündet ------- ---- ------ -------- aus ------ ------- | Hiob 41,13 |
14 | Hiob 41,14 | Stärke wohnt auf seinem Nacken, und Angst springt vor ihm her. | ------- wohnt --- ------ Nacken, --- ----- springt --- --- her. | ------- ----- auf ------ ------- --- ----- springt --- --- ---- | Hiob 41,14 |
15 | Hiob 41,15 | Die Wampen seines Fleisches haften aneinander; sie sind ihm fest angegossen, unbeweglich. | --- Wampen ------ --------- haften ----------- --- sind --- ---- angegossen, ------------ | --- ------ seines --------- ------ ----------- --- sind --- ---- ----------- ------------ | Hiob 41,15 |
16 | Hiob 41,16 | Sein Herz ist hart wie Stein und so fest wie der untere Mühlstein. | ---- Herz --- ---- wie ----- --- so ---- --- der ------ ----------- | ---- ---- ist ---- --- ----- --- so ---- --- --- ------ Mühlstein. | Hiob 41,16 |
17 | Hiob 41,17 | Die Helden erbeben, wenn er auffährt; vor Verzagtheit geraten sie außer sich. | --- Helden -------- ---- er ---------- --- Verzagtheit ------- --- außer ----- | --- ------ erbeben, ---- -- ---------- --- Verzagtheit ------- --- ------ ----- | Hiob 41,17 |
18 | Hiob 41,18 | Trifft man ihn mit dem Schwert, so hält es nicht stand, weder Speer noch Wurfspieß oder Harpune. | ------ man --- --- dem -------- -- hält -- ----- stand, ----- ----- noch ---------- ---- Harpune. | ------ --- ihn --- --- -------- -- hält -- ----- ------ ----- Speer ---- ---------- ---- -------- | Hiob 41,18 |
19 | Hiob 41,19 | Er achtet Eisen für Stroh und Erz für faules Holz. | -- achtet ----- ---- Stroh --- --- für ------ ----- | -- ------ Eisen ---- ----- --- --- für ------ ----- | Hiob 41,19 |
20 | Hiob 41,20 | Kein Pfeil kann ihn in die Flucht schlagen, und Schleudersteine verwandeln sich ihm zu Spreu. | ---- Pfeil ---- --- in --- ------ schlagen, --- --------------- verwandeln ---- --- zu ------ | ---- ----- kann --- -- --- ------ schlagen, --- --------------- ---------- ---- ihm -- ------ | Hiob 41,20 |
21 | Hiob 41,21 | Er achtet die Keule für einen Halm und verlacht das Sausen des Wurfspießes. | -- achtet --- ----- für ----- ---- und -------- --- Sausen --- ------------- | -- ------ die ----- ---- ----- ---- und -------- --- ------ --- Wurfspießes. | Hiob 41,21 |
22 | Hiob 41,22 | Auf seiner Unterseite sind spitze Scherben; er zieht einen Dreschschlitten über den Schlamm dahin. | --- seiner ---------- ---- spitze --------- -- zieht ----- --------------- über --- ------- dahin. | --- ------ Unterseite ---- ------ --------- -- zieht ----- --------------- ----- --- Schlamm ------ | Hiob 41,22 |
23 | Hiob 41,23 | Er bringt die Tiefe zum Sieden wie einen Kessel, macht das Meer zu einem Salbentopf. | -- bringt --- ----- zum ------ --- einen ------- ----- das ---- -- einem ----------- | -- ------ die ----- --- ------ --- einen ------- ----- --- ---- zu ----- ----------- | Hiob 41,23 |
24 | Hiob 41,24 | Hinter ihm her leuchtet der Pfad; man könnte die Flut für Silberhaar halten. | ------ ihm --- -------- der ----- --- könnte --- ---- für ---------- ------- | ------ --- her -------- --- ----- --- könnte --- ---- ---- ---------- halten. | Hiob 41,24 |
25 | Hiob 41,25 | Auf Erden ist nicht seinesgleichen; er ist geschaffen, um ohne Furcht zu sein. | --- Erden --- ----- seinesgleichen; -- --- geschaffen, -- ---- Furcht -- ----- | --- ----- ist ----- --------------- -- --- geschaffen, -- ---- ------ -- sein. | Hiob 41,25 |
26 | Hiob 41,26 | Er schaut alle Hohen [furchtlos] an; er ist ein König über alle Stolzen. | -- schaut ---- ----- [furchtlos] --- -- ist --- ------ über ---- -------- | -- ------ alle ----- ----------- --- -- ist --- ------ ----- ---- Stolzen. | Hiob 41,26 |