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Deutsch 38-Sacharja 011(Schl2000)

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1

Sacharja 11,1

Libanon, öffne deine Türen, damit das Feuer deine Zedern fresse!

-------- öffne ----- ------- damit --- ----- deine ------ -------

-------- ------ deine ------- ----- --- ----- deine ------ -------

Sacharja 11,1


2

Sacharja 11,2

Klage, Zypresse, denn die Zeder ist gefallen, denn die Herrlichen sind verwüstet! Klagt, ihr Eichen von Baschan, denn der undurchdringliche Wald ist umgehauen!

------ Zypresse, ---- --- Zeder --- --------- denn --- ---------- sind ----------- ------ ihr ------ --- Baschan, ---- --- undurchdringliche ---- --- umgehauen!

------ --------- denn --- ----- --- --------- denn --- ---------- ---- ----------- Klagt, --- ------ --- -------- denn --- ----------------- ---- --- umgehauen!

Sacharja 11,2


3

Sacharja 11,3

Man hört die Hirten jammern, weil ihre Herrlichkeit verwüstet ist; man hört die Junglöwen brüllen, denn das Dickicht des Jordan ist dahin.

--- hört --- ------ jammern, ---- ---- Herrlichkeit ---------- ---- man ----- --- Junglöwen --------- ---- das -------- --- Jordan --- ------

--- ----- die ------ -------- ---- ---- Herrlichkeit ---------- ---- --- ----- die ---------- --------- ---- --- Dickicht --- ------ --- ------

Sacharja 11,3


4

Sacharja 11,4

So sprach der HERR, mein Gott: Weide die Schlachtschafe!

-- sprach --- ----- mein ----- ----- die ---------------

-- ------ der ----- ---- ----- ----- die ---------------

Sacharja 11,4


5

Sacharja 11,5

Denn ihre Käufer schlachten sie und fühlen sich dabei unschuldig, und ihre Verkäufer sagen: »Gelobt sei der HERR; ich bin reich geworden!« Und ihre Hirten verschonen sie nicht.

---- ihre ------- ---------- sie --- ------- sich ----- ----------- und ---- ---------- sagen: -------- --- der ----- --- bin ----- ----------- Und ---- ------ verschonen --- ------

---- ---- Käufer ---------- --- --- ------- sich ----- ----------- --- ---- Verkäufer ------ -------- --- --- HERR; --- --- ----- ----------- Und ---- ------ ---------- --- nicht.

Sacharja 11,5


6

Sacharja 11,6

Darum will ich die Bewohner des Landes auch nicht mehr verschonen, spricht der HERR, sondern siehe, ich will die Menschen preisgeben, jeden in die Hand seines Nächsten und in die Hand seines Königs; die werden das Land verheeren, und ich werde es nicht aus ihrer Hand erretten.

----- will --- --- Bewohner --- ------ auch ----- ---- verschonen, ------- --- HERR, ------- ------ ich ---- --- Menschen ----------- ----- in --- ---- seines --------- --- in --- ---- seines -------- --- werden --- ---- verheeren, --- --- werde -- ----- aus ----- ---- erretten.

----- ---- ich --- -------- --- ------ auch ----- ---- ----------- ------- der ----- ------- ------ --- will --- -------- ----------- ----- in --- ---- ------ --------- und -- --- ---- ------ Königs; --- ------ --- ---- verheeren, --- --- ----- -- nicht --- ----- ---- ---------

Sacharja 11,6


7

Sacharja 11,7

Und ich weidete die Schlachtschafe, ja, die Elenden der Herde; und ich nahm mir zwei Stäbe, den einen nannte ich »Huld«, den anderen »Verbindung«. Und so weidete ich die Schafe.

--- ich ------- --- Schlachtschafe, --- --- Elenden --- ------ und --- ---- mir ---- ------- den ----- ------ ich --------- --- anderen --------------- --- so ------- --- die -------

--- --- weidete --- --------------- --- --- Elenden --- ------ --- --- nahm --- ---- ------- --- einen ------ --- --------- --- anderen --------------- --- -- ------- ich --- -------

Sacharja 11,7


8

Sacharja 11,8

Da vertilgte ich in einem Monat die drei Hirten; und meine Seele wurde ungeduldig über sie, und auch sie hatten einen Widerwillen gegen mich.

-- vertilgte --- -- einem ----- --- drei ------- --- meine ----- ----- ungeduldig ----- ---- und ---- --- hatten ----- ----------- gegen -----

-- --------- ich -- ----- ----- --- drei ------- --- ----- ----- wurde ---------- ----- ---- --- auch --- ------ ----- ----------- gegen -----

Sacharja 11,8


9

Sacharja 11,9

Da sprach ich: Ich will euch nicht länger weiden! Was stirbt, das sterbe; was vertilgt werden soll, das werde vertilgt; von den öœbrigen aber soll jedes das Fleisch des anderen fressen!

-- sprach ---- --- will ---- ----- länger ------- --- stirbt, --- ------- was -------- ------ soll, --- ----- vertilgt; --- --- öœbrigen ---- ---- jedes --- ------- des ------- --------

-- ------ ich: --- ---- ---- ----- länger ------- --- ------- --- sterbe; --- -------- ------ ----- das ----- --------- --- --- öœbrigen ---- ---- ----- --- Fleisch --- ------- --------

Sacharja 11,9


10

Sacharja 11,10

Und ich nahm meinen Stab »Huld« und zerbrach ihn, um meinen Bund aufzuheben, den ich mit allen Völkern gemacht hatte.

--- ich ---- ------ Stab -------- --- zerbrach ---- -- meinen ---- ----------- den --- --- allen -------- ------- hatte.

--- --- nahm ------ ---- -------- --- zerbrach ---- -- ------ ---- aufzuheben, --- --- --- ----- Völkern ------- ------

Sacharja 11,10


11

Sacharja 11,11

Als er nun an jenem Tag aufgehoben wurde, da erkannten die Elenden der Herde, die auf mich achteten, dass es das Wort des HERRN war.

--- er --- -- jenem --- ---------- wurde, -- --------- die ------- --- Herde, --- --- mich --------- ---- es --- ---- des ----- ----

--- -- nun -- ----- --- ---------- wurde, -- --------- --- ------- der ------ --- --- ---- achteten, ---- -- --- ---- des ----- ----

Sacharja 11,11


12

Sacharja 11,12

Da sprach ich zu ihnen: Wenn es gut ist in euren Augen, so gebt mir meinen Lohn; wenn aber nicht, so lasst es bleiben! Da wogen sie mir meinen Lohn ab, 30 Silberlinge.

-- sprach --- -- ihnen: ---- -- gut --- -- euren ------ -- gebt --- ------ Lohn; ---- ---- nicht, -- ----- es -------- -- wogen --- --- meinen ---- --- 30 ------------

-- ------ ich -- ------ ---- -- gut --- -- ----- ------ so ---- --- ------ ----- wenn ---- ------ -- ----- es -------- -- ----- --- mir ------ ---- --- -- Silberlinge.

Sacharja 11,12


13

Sacharja 11,13

Aber der HERR sprach zu mir: Wirf ihn dem Töpfer hin, den herrlichen Preis, dessen ich von ihnen wert geachtet worden bin! Da nahm ich die 30 Silberlinge und warf sie ins Haus des HERRN, dem Töpfer hin.

---- der ---- ------ zu ---- ---- ihn --- ------- hin, --- ---------- Preis, ------ --- von ----- ---- geachtet ------ ---- Da ---- --- die -- ----------- und ---- --- ins ---- --- HERRN, --- ------- hin.

---- --- HERR ------ -- ---- ---- ihn --- ------- ---- --- herrlichen ------ ------ --- --- ihnen ---- -------- ------ ---- Da ---- --- --- -- Silberlinge --- ---- --- --- Haus --- ------ --- ------- hin.

Sacharja 11,13


14

Sacharja 11,14

Darauf zerbrach ich auch meinen zweiten Stab »Verbindung«, um die Bruderschaft aufzulösen zwischen Juda und dem Haus Israel.

------ zerbrach --- ---- meinen ------- ---- »Verbindung«, -- --- Bruderschaft ----------- -------- Juda --- --- Haus -------

------ -------- ich ---- ------ ------- ---- »Verbindung«, -- --- ------------ ----------- zwischen ---- --- --- ---- Israel.

Sacharja 11,14


15

Sacharja 11,15

Da sprach der HERR zu mir: Nimm dir wiederum Geräte eines törichten Hirten!

-- sprach --- ---- zu ---- ---- dir -------- ------- eines ---------- -------

-- ------ der ---- -- ---- ---- dir -------- ------- ----- ---------- Hirten!

Sacharja 11,15


16

Sacharja 11,16

Denn siehe, ich lasse einen Hirten im Land aufkommen, der das Vermisste nicht sucht, das Zerstreute nicht sammelt, das Verwundete nicht heilt, das Gesunde nicht versorgt, sondern das Gemästete frisst und ihre Klauen zerreißt.

---- siehe, --- ----- einen ------ -- Land ---------- --- das --------- ----- sucht, --- ---------- nicht -------- --- Verwundete ----- ------ das ------- ----- versorgt, ------- --- Gemästete ------ --- ihre ------ ----------

---- ------ ich ----- ----- ------ -- Land ---------- --- --- --------- nicht ------ --- ---------- ----- sammelt, --- ---------- ----- ------ das ------- ----- --------- ------- das ---------- ------ --- ---- Klauen ----------

Sacharja 11,16


17

Sacharja 11,17

Wehe dem nichtsnutzigen Hirten, der die Herde verlässt! Ein Schwert komme über seinen Arm und über sein rechtes Auge! Sein Arm soll gänzlich verdorren und sein rechtes Auge völlig erlöschen!

---- dem -------------- ------- der --- ----- verlässt! --- ------- komme ----- ------ Arm --- ----- sein ------- ----- Sein --- ---- gänzlich --------- --- sein ------- ---- völlig -----------

---- --- nichtsnutzigen ------- --- --- ----- verlässt! --- ------- ----- ----- seinen --- --- ----- ---- rechtes ----- ---- --- ---- gänzlich --------- --- ---- ------- Auge ------- -----------

Sacharja 11,17