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Deutsch 40-Matthaus 013(Schl2000)

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1

Matthaus 13,1

An jenem Tag aber ging Jesus aus dem Haus hinaus und setzte sich an den See.

-- jenem --- ---- ging ----- --- dem ---- ------ und ------ ---- an --- ----

-- ----- Tag ---- ---- ----- --- dem ---- ------ --- ------ sich -- --- ----

Matthaus 13,1


2

Matthaus 13,2

Und es versammelte sich eine große Volksmenge zu ihm, so dass er in das Schiff stieg und sich setzte; und alles Volk stand am Ufer.

--- es ----------- ---- eine ------ ---------- zu ---- -- dass -- -- das ------ ----- und ---- ------- und ----- ---- stand -- -----

--- -- versammelte ---- ---- ------ ---------- zu ---- -- ---- -- in --- ------ ----- --- sich ------- --- ----- ---- stand -- -----

Matthaus 13,2


3

Matthaus 13,3

Und er redete zu ihnen vieles in Gleichnissen und sprach: Siehe, der Sämann ging aus, um zu säen.

--- er ------ -- ihnen ------ -- Gleichnissen --- ------- Siehe, --- ------- ging ---- -- zu ------

--- -- redete -- ----- ------ -- Gleichnissen --- ------- ------ --- Sämann ---- ---- -- -- säen.

Matthaus 13,3


4

Matthaus 13,4

Und als er säte, fiel etliches an den Weg, und die Vögel kamen und fraßen es auf.

--- als -- ------ fiel -------- -- den ---- --- die ------ ----- und ------- -- auf.

--- --- er ------ ---- -------- -- den ---- --- --- ------ kamen --- ------- -- ----

Matthaus 13,4


5

Matthaus 13,5

Anderes aber fiel auf den felsigen Boden, wo es nicht viel Erde hatte; und es ging sogleich auf, weil es keine tiefe Erde hatte.

------- aber ---- --- den -------- ------ wo -- ----- viel ---- ------ und -- ---- sogleich ---- ---- es ----- ----- Erde ------

------- ---- fiel --- --- -------- ------ wo -- ----- ---- ---- hatte; --- -- ---- -------- auf, ---- -- ----- ----- Erde ------

Matthaus 13,5


6

Matthaus 13,6

Als aber die Sonne aufging, wurde es verbrannt, und weil es keine Wurzel hatte, verdorrte es.

--- aber --- ----- aufging, ----- -- verbrannt, --- ---- es ----- ------ hatte, --------- ---

--- ---- die ----- -------- ----- -- verbrannt, --- ---- -- ----- Wurzel ------ --------- ---

Matthaus 13,6


7

Matthaus 13,7

Anderes aber fiel unter die Dornen; und die Dornen wuchsen auf und erstickten es.

------- aber ---- ----- die ------- --- die ------ ------- auf --- ---------- es.

------- ---- fiel ----- --- ------- --- die ------ ------- --- --- erstickten ---

Matthaus 13,7


8

Matthaus 13,8

Anderes aber fiel auf das gute Erdreich und brachte Frucht, etliches hundertfältig, etliches sechzigfältig und etliches dreißigfältig.

------- aber ---- --- das ---- -------- und ------- ------- etliches --------------- -------- sechzigfältig --- -------- dreißigfältig.

------- ---- fiel --- --- ---- -------- und ------- ------- -------- --------------- etliches -------------- --- -------- ----------------

Matthaus 13,8


9

Matthaus 13,9

Wer Ohren hat zu hören, der höre!

--- Ohren --- -- hören, --- ------

--- ----- hat -- ------- --- ------

Matthaus 13,9


10

Matthaus 13,10

Da traten die Jünger herzu und sprachen zu ihm: Warum redest du in Gleichnissen mit ihnen?

-- traten --- ------- herzu --- -------- zu ---- ----- redest -- -- Gleichnissen --- ------

-- ------ die ------- ----- --- -------- zu ---- ----- ------ -- in ------------ --- ------

Matthaus 13,10


11

Matthaus 13,11

Er aber antwortete und sprach zu ihnen: Weil es euch gegeben ist, die Geheimnisse des Reiches der Himmel zu verstehen; jenen aber ist es nicht gegeben.

-- aber ---------- --- sprach -- ------ Weil -- ---- gegeben ---- --- Geheimnisse --- ------- der ------ -- verstehen; ----- ---- ist -- ----- gegeben.

-- ---- antwortete --- ------ -- ------ Weil -- ---- ------- ---- die ----------- --- ------- --- Himmel -- ---------- ----- ---- ist -- ----- --------

Matthaus 13,11


12

Matthaus 13,12

Denn wer hat, dem wird gegeben werden, und er wird öœberfluss haben; wer aber nicht hat, von dem wird auch das genommen werden, was er hat.

---- wer ---- --- wird ------- ------- und -- ---- öœberfluss ------ --- aber ----- ---- von --- ---- auch --- -------- werden, --- -- hat.

---- --- hat, --- ---- ------- ------- und -- ---- ------------ ------ wer ---- ----- ---- --- dem ---- ---- --- -------- werden, --- -- ----

Matthaus 13,12


13

Matthaus 13,13

Darum rede ich in Gleichnissen zu ihnen, weil sie sehen und doch nicht sehen und hören und doch nicht hören und nicht verstehen;

----- rede --- -- Gleichnissen -- ------ weil --- ----- und ---- ----- sehen --- ------ und ---- ----- hören --- ----- verstehen;

----- ---- ich -- ------------ -- ------ weil --- ----- --- ---- nicht ----- --- ------ --- doch ----- ------ --- ----- verstehen;

Matthaus 13,13


14

Matthaus 13,14

und es wird an ihnen die Weissagung des Jesaja erfüllt, welche lautet: »Mit den Ohren werdet ihr hören und nicht verstehen, und mit den Augen werdet ihr sehen und nicht erkennen!

--- es ---- -- ihnen --- ---------- des ------ --------- welche ------- ----- den ----- ------ ihr ------ --- nicht ---------- --- mit --- ----- werdet --- ----- und ----- ---------

--- -- wird -- ----- --- ---------- des ------ --------- ------ ------- »Mit --- ----- ------ --- hören --- ----- ---------- --- mit --- ----- ------ --- sehen --- ----- ---------

Matthaus 13,14


15

Matthaus 13,15

Denn das Herz dieses Volkes ist verstockt, und mit den Ohren hören sie schwer, und ihre Augen haben sie verschlossen, dass sie nicht etwa mit den Augen sehen und mit den Ohren hören und mit dem Herzen verstehen und sich bekehren und ich sie heile.«

---- das ---- ------ Volkes --- ---------- und --- --- Ohren ------ --- schwer, --- ---- Augen ----- --- verschlossen, ---- --- nicht ---- --- den ----- ----- und --- --- Ohren ------ --- mit --- ------ verstehen --- ---- bekehren --- --- sie --------

---- --- Herz ------ ------ --- ---------- und --- --- ----- ------ sie ------- --- ---- ----- haben --- ------------- ---- --- nicht ---- --- --- ----- sehen --- --- --- ----- hören --- --- --- ------ verstehen --- ---- -------- --- ich --- --------

Matthaus 13,15


16

Matthaus 13,16

Aber glückselig sind eure Augen, dass sie sehen, und eure Ohren, dass sie hören!

---- glückselig ---- ---- Augen, ---- --- sehen, --- ---- Ohren, ---- --- hören!

---- ----------- sind ---- ------ ---- --- sehen, --- ---- ------ ---- sie -------

Matthaus 13,16


17

Matthaus 13,17

Denn wahrlich, ich sage euch: Viele Propheten und Gerechte haben zu sehen begehrt, was ihr seht, und haben es nicht gesehen, und zu hören, was ihr hört, und haben es nicht gehört.

---- wahrlich, --- ---- euch: ----- --------- und -------- ----- zu ----- -------- was --- ----- und ----- -- nicht -------- --- zu ------- --- ihr ------ --- haben -- ----- gehört.

---- --------- ich ---- ----- ----- --------- und -------- ----- -- ----- begehrt, --- --- ----- --- haben -- ----- -------- --- zu ------- --- --- ------ und ----- -- ----- --------

Matthaus 13,17


18

Matthaus 13,18

So hört nun ihr das Gleichnis vom Sämann:

-- hört --- --- das --------- --- Sämann:

-- ----- nun --- --- --------- --- Sämann:

Matthaus 13,18


19

Matthaus 13,19

Sooft jemand das Wort vom Reich hört und nicht versteht, kommt der Böse und raubt das, was in sein Herz gesät ist. Das ist der, bei dem es an den Weg gestreut war.

----- jemand --- ---- vom ----- ----- und ----- --------- kommt --- ----- und ----- ---- was -- ---- Herz ------ ---- Das --- ---- bei --- -- an --- --- gestreut ----

----- ------ das ---- --- ----- ----- und ----- --------- ----- --- Böse --- ----- ---- --- in ---- ---- ------ ---- Das --- ---- --- --- es -- --- --- -------- war.

Matthaus 13,19


20

Matthaus 13,20

Auf den felsigen Boden gestreut aber ist es bei dem, der das Wort hört und sogleich mit Freuden aufnimmt;

--- den -------- ----- gestreut ---- --- es --- ---- der --- ---- hört --- -------- mit ------- ---------

--- --- felsigen ----- -------- ---- --- es --- ---- --- --- Wort ----- --- -------- --- Freuden ---------

Matthaus 13,20


21

Matthaus 13,21

er hat aber keine Wurzel in sich, sondern ist wetterwendisch. Wenn nun Bedrängnis oder Verfolgung entsteht um des Wortes willen, so nimmt er sogleich Anstoß.

-- hat ---- ----- Wurzel -- ----- sondern --- --------------- Wenn --- ----------- oder ---------- -------- um --- ------ willen, -- ----- er -------- --------

-- --- aber ----- ------ -- ----- sondern --- --------------- ---- --- Bedrängnis ---- ---------- -------- -- des ------ ------- -- ----- er -------- --------

Matthaus 13,21


22

Matthaus 13,22

Unter die Dornen gesät aber ist es bei dem, der das Wort hört, aber die Sorge dieser Weltzeit und der Betrug des Reichtums ersticken das Wort, und es wird unfruchtbar.

----- die ------ ------ aber --- -- bei ---- --- das ---- ------ aber --- ----- dieser -------- --- der ------ --- Reichtums --------- --- Wort, --- -- wird ------------

----- --- Dornen ------ ---- --- -- bei ---- --- --- ---- hört, ---- --- ----- ------ Weltzeit --- --- ------ --- Reichtums --------- --- ----- --- es ---- ------------

Matthaus 13,22


23

Matthaus 13,23

Auf das gute Erdreich gesät aber ist es bei dem, der das Wort hört und versteht; der bringt dann auch Frucht, und der eine trägt hundertfältig, ein anderer sechzigfältig, ein dritter dreißigfältig.

--- das ---- -------- gesät ---- --- es --- ---- der --- ---- hört --- --------- der ------ ---- auch ------- --- der ---- ------ hundertfältig, --- ------- sechzigfältig, --- ------- dreißigfältig.

--- --- gute -------- ------ ---- --- es --- ---- --- --- Wort ----- --- --------- --- bringt ---- ---- ------- --- der ---- ------ --------------- --- anderer --------------- --- ------- ----------------

Matthaus 13,23


24

Matthaus 13,24

Ein anderes Gleichnis legte er ihnen vor und sprach: Das Reich der Himmel gleicht einem Menschen, der guten Samen auf seinen Acker säte.

--- anderes --------- ----- er ----- --- und ------- --- Reich --- ------ gleicht ----- --------- der ----- ----- auf ------ ----- säte.

--- ------- Gleichnis ----- -- ----- --- und ------- --- ----- --- Himmel ------- ----- --------- --- guten ----- --- ------ ----- säte.

Matthaus 13,24


25

Matthaus 13,25

Während aber die Leute schliefen, kam sein Feind und säte Unkraut mitten unter den Weizen und ging davon.

-------- aber --- ----- schliefen, --- ---- Feind --- ----- Unkraut ------ ----- den ------ --- ging ------

-------- ---- die ----- ---------- --- ---- Feind --- ----- ------- ------ unter --- ------ --- ---- davon.

Matthaus 13,25


26

Matthaus 13,26

Als nun die Saat wuchs und Frucht ansetzte, da zeigte sich auch das Unkraut.

--- nun --- ---- wuchs --- ------ ansetzte, -- ------ sich ---- --- Unkraut.

--- --- die ---- ----- --- ------ ansetzte, -- ------ ---- ---- das --------

Matthaus 13,26


27

Matthaus 13,27

Und die Knechte des Hausherrn traten herzu und sprachen zu ihm: Herr, hast du nicht guten Samen in deinen Acker gesät? Woher hat er denn das Unkraut?

--- die ------- --- Hausherrn ------ ----- und -------- -- ihm: ----- ---- du ----- ----- Samen -- ------ Acker ------- ----- hat -- ---- das --------

--- --- Knechte --- --------- ------ ----- und -------- -- ---- ----- hast -- ----- ----- ----- in ------ ----- ------- ----- hat -- ---- --- --------

Matthaus 13,27


28

Matthaus 13,28

Er aber sprach zu ihnen: Das hat der Feind getan! Da sagten die Knechte zu ihm: Willst du nun, dass wir hingehen und es zusammenlesen?

-- aber ------ -- ihnen: --- --- der ----- ------ Da ------ --- Knechte -- ---- Willst -- ---- dass --- -------- und -- --------------

-- ---- sprach -- ------ --- --- der ----- ------ -- ------ die ------- -- ---- ------ du ---- ---- --- -------- und -- --------------

Matthaus 13,28


29

Matthaus 13,29

Er aber sprach: Nein! damit ihr nicht beim Zusammenlesen des Unkrauts zugleich mit ihm den Weizen ausreißt.

-- aber ------- ----- damit --- ----- beim ------------- --- Unkrauts -------- --- ihm --- ------ ausreißt.

-- ---- sprach: ----- ----- --- ----- beim ------------- --- -------- -------- mit --- --- ------ ----------

Matthaus 13,29


30

Matthaus 13,30

Lasst beides miteinander wachsen bis zur Ernte, und zur Zeit der Ernte will ich den Schnittern sagen: Lest zuerst das Unkraut zusammen und bindet es in Bündel, dass man es verbrenne; den Weizen aber sammelt in meine Scheune!

----- beides ----------- ------- bis --- ------ und --- ---- der ----- ---- ich --- ---------- sagen: ---- ------ das ------- -------- und ------ -- in -------- ---- man -- ---------- den ------ ---- sammelt -- ----- Scheune!

----- ------ miteinander ------- --- --- ------ und --- ---- --- ----- will --- --- ---------- ------ Lest ------ --- ------- -------- und ------ -- -- -------- dass --- -- ---------- --- Weizen ---- ------- -- ----- Scheune!

Matthaus 13,30


31

Matthaus 13,31

Ein anderes Gleichnis legte er ihnen vor und sprach: Das Reich der Himmel gleicht einem Senfkorn, das ein Mensch nahm und auf seinen Acker säte.

--- anderes --------- ----- er ----- --- und ------- --- Reich --- ------ gleicht ----- --------- das --- ------ nahm --- --- seinen ----- ------

--- ------- Gleichnis ----- -- ----- --- und ------- --- ----- --- Himmel ------- ----- --------- --- ein ------ ---- --- --- seinen ----- ------

Matthaus 13,31


32

Matthaus 13,32

Dieses ist zwar unter allen Samen das kleinste; wenn es aber wächst, so wird es größer als die Gartengewächse und wird ein Baum, so dass die Vögel des Himmels kommen und in seinen Zweigen nisten.

------ ist ---- ----- allen ----- --- kleinste; ---- -- aber -------- -- wird -- -------- als --- --------------- und ---- --- Baum, -- ---- die ------ --- Himmels ------ --- in ------ ------- nisten.

------ --- zwar ----- ----- ----- --- kleinste; ---- -- ---- -------- so ---- -- -------- --- die --------------- --- ---- --- Baum, -- ---- --- ------ des ------- ------ --- -- seinen ------- -------

Matthaus 13,32


33

Matthaus 13,33

Ein anderes Gleichnis sagte er ihnen: Das Reich der Himmel gleicht einem Sauerteig, den eine Frau nahm und heimlich in drei Scheffel Mehl hineinmischte, bis das Ganze durchsäuert war.

--- anderes --------- ----- er ------ --- Reich --- ------ gleicht ----- ---------- den ---- ---- nahm --- -------- in ---- -------- Mehl -------------- --- das ----- ------------ war.

--- ------- Gleichnis ----- -- ------ --- Reich --- ------ ------- ----- Sauerteig, --- ---- ---- ---- und -------- -- ---- -------- Mehl -------------- --- --- ----- durchsäuert ----

Matthaus 13,33


34

Matthaus 13,34

Dies alles redete Jesus in Gleichnissen zu der Volksmenge, und ohne Gleichnis redete er nicht zu ihnen,

---- alles ------ ----- in ------------ -- der ----------- --- ohne --------- ------ er ----- -- ihnen,

---- ----- redete ----- -- ------------ -- der ----------- --- ---- --------- redete -- ----- -- ------

Matthaus 13,34


35

Matthaus 13,35

damit erfüllt würde, was durch den Propheten gesagt ist, der spricht: »Ich will meinen Mund zu Gleichnissreden öffnen; ich will verkündigen, was von Grundlegung der Welt an verborgen war«.

----- erfüllt ------- --- durch --- --------- gesagt ---- --- spricht: ----- ---- meinen ---- -- Gleichnissreden -------- --- will ------------- --- von ----------- --- Welt -- --------- war«.

----- -------- würde, --- ----- --- --------- gesagt ---- --- -------- ----- will ------ ---- -- --------------- öffnen; --- ---- ------------- --- von ----------- --- ---- -- verborgen ------

Matthaus 13,35


36

Matthaus 13,36

Da entließ Jesus die Volksmenge und ging in das Haus. Und seine Jünger traten zu ihm und sprachen: Erkläre uns das Gleichnis vom Unkraut auf dem Acker!

-- entließ ----- --- Volksmenge --- ---- in --- ----- Und ----- ------- traten -- --- und --------- -------- uns --- --------- vom ------- --- dem ------

-- -------- Jesus --- ---------- --- ---- in --- ----- --- ----- Jünger ------ -- --- --- sprachen: -------- --- --- --------- vom ------- --- --- ------

Matthaus 13,36


37

Matthaus 13,37

Und er antwortete und sprach zu ihnen: Der den guten Samen sät, ist der Sohn des Menschen.

--- er ---------- --- sprach -- ------ Der --- ----- Samen ----- --- der ---- --- Menschen.

--- -- antwortete --- ------ -- ------ Der --- ----- ----- ----- ist --- ---- --- ---------

Matthaus 13,37


38

Matthaus 13,38

Der Acker ist die Welt; der gute Same sind die Kinder des Reichs; das Unkraut aber sind die Kinder des Bösen.

--- Acker --- --- Welt; --- ---- Same ---- --- Kinder --- ------- das ------- ---- sind --- ------ des -------

--- ----- ist --- ----- --- ---- Same ---- --- ------ --- Reichs; --- ------- ---- ---- die ------ --- -------

Matthaus 13,38


39

Matthaus 13,39

Der Feind, der es sät, ist der Teufel; die Ernte ist das Ende der Weltzeit; die Schnitter sind die Engel.

--- Feind, --- -- sät, --- --- Teufel; --- ----- ist --- ---- der --------- --- Schnitter ---- --- Engel.

--- ------ der -- ----- --- --- Teufel; --- ----- --- --- Ende --- --------- --- --------- sind --- ------

Matthaus 13,39


40

Matthaus 13,40

Gleichwie man nun das Unkraut sammelt und mit Feuer verbrennt, so wird es sein am Ende dieser Weltzeit.

--------- man --- --- Unkraut ------- --- mit ----- ---------- so ---- -- sein -- ---- dieser ---------

--------- --- nun --- ------- ------- --- mit ----- ---------- -- ---- es ---- -- ---- ------ Weltzeit.

Matthaus 13,40


41

Matthaus 13,41

Der Sohn des Menschen wird seine Engel aussenden, und sie werden alle ö"rgernisse und die Gesetzlosigkeit verüben aus seinem Reich sammeln

--- Sohn --- -------- wird ----- ----- aussenden, --- --- werden ---- ------------ und --- --------------- verüben --- ------ Reich -------

--- ---- des -------- ---- ----- ----- aussenden, --- --- ------ ---- ö"rgernisse --- --- --------------- -------- aus ------ ----- -------

Matthaus 13,41


42

Matthaus 13,42

und werden sie in den Feuerofen werfen; dort wird das Heulen und das Zähneknirschen sein.

--- werden --- -- den --------- ------- dort ---- --- Heulen --- --- Zähneknirschen -----

--- ------ sie -- --- --------- ------- dort ---- --- ------ --- das --------------- -----

Matthaus 13,42


43

Matthaus 13,43

Dann werden die Gerechten leuchten wie die Sonne im Reich ihres Vaters. Wer Ohren hat zu hören, der höre!

---- werden --- --------- leuchten --- --- Sonne -- ----- ihres ------- --- Ohren --- -- hören, --- ------

---- ------ die --------- -------- --- --- Sonne -- ----- ----- ------- Wer ----- --- -- ------- der ------

Matthaus 13,43


44

Matthaus 13,44

Wiederum gleicht das Reich der Himmel einem verborgenen Schatz im Acker, den ein Mensch fand und verbarg. Und vor Freude darüber geht er hin und verkauft alles, was er hat, und kauft jenen Acker.

-------- gleicht --- ----- der ------ ----- verborgenen ------ -- Acker, --- --- Mensch ---- --- verbarg. --- --- Freude -------- ---- er --- --- verkauft ------ --- er ---- --- kauft ----- ------

-------- ------- das ----- --- ------ ----- verborgenen ------ -- ------ --- ein ------ ---- --- -------- Und --- ------ -------- ---- er --- --- -------- ------ was -- ---- --- ----- jenen ------

Matthaus 13,44


45

Matthaus 13,45

Wiederum gleicht das Reich der Himmel einem Kaufmann, der schöne Perlen suchte.

-------- gleicht --- ----- der ------ ----- Kaufmann, --- ------- Perlen -------

-------- ------- das ----- --- ------ ----- Kaufmann, --- ------- ------ -------

Matthaus 13,45


46

Matthaus 13,46

Als er eine kostbare Perle fand, ging er hin, verkaufte alles, was er hatte, und kaufte sie.

--- er ---- -------- Perle ----- ---- er ---- --------- alles, --- -- hatte, --- ------ sie.

--- -- eine -------- ----- ----- ---- er ---- --------- ------ --- er ------ --- ------ ----

Matthaus 13,46


47

Matthaus 13,47

Wiederum gleicht das Reich der Himmel einem Netz, das ins Meer geworfen wurde und alle Arten [von Fischen] zusammenbrachte.

-------- gleicht --- ----- der ------ ----- Netz, --- --- Meer -------- ----- und ---- ----- [von -------- ----------------

-------- ------- das ----- --- ------ ----- Netz, --- --- ---- -------- wurde --- ---- ----- ---- Fischen] ----------------

Matthaus 13,47


48

Matthaus 13,48

Als es voll war, zogen sie es ans Ufer, setzten sich und sammelten die guten in Gefäße, die faulen aber warfen sie weg.

--- es ---- ---- zogen --- -- ans ----- ------- sich --- --------- die ----- -- Gefäße, --- ------ aber ------ --- weg.

--- -- voll ---- ----- --- -- ans ----- ------- ---- --- sammelten --- ----- -- --------- die ------ ---- ------ --- weg.

Matthaus 13,48


49

Matthaus 13,49

So wird es am Ende der Weltzeit sein: Die Engel werden ausgehen und die Bösen aus der Mitte der Gerechten aussondern

-- wird -- -- Ende --- -------- sein: --- ----- werden -------- --- die ------ --- der ----- --- Gerechten ----------

-- ---- es -- ---- --- -------- sein: --- ----- ------ -------- und --- ------ --- --- Mitte --- --------- ----------

Matthaus 13,49


50

Matthaus 13,50

und sie in den Feuerofen werfen. Dort wird das Heulen und Zähneknirschen sein.

--- sie -- --- Feuerofen ------- ---- wird --- ------ und --------------- -----

--- --- in --- --------- ------- ---- wird --- ------ --- --------------- sein.

Matthaus 13,50


51

Matthaus 13,51

Jesus sprach zu ihnen: Habt ihr das alles verstanden? Sie sprachen zu ihm: Ja, Herr!

----- sprach -- ------ Habt --- --- alles ----------- --- sprachen -- ---- Ja, -----

----- ------ zu ------ ---- --- --- alles ----------- --- -------- -- ihm: --- -----

Matthaus 13,51


52

Matthaus 13,52

Da sagte er zu ihnen: Darum gleicht jeder Schriftgelehrte, der für das Reich der Himmel unterrichtet ist, einem Hausvater, der aus seinem Schatz Neues und Altes hervorholt.

-- sagte -- -- ihnen: ----- ------- jeder ---------------- --- für --- ----- der ------ ------------ ist, ----- ---------- der --- ------ Schatz ----- --- Altes -----------

-- ----- er -- ------ ----- ------- jeder ---------------- --- ---- --- Reich --- ------ ------------ ---- einem ---------- --- --- ------ Schatz ----- --- ----- -----------

Matthaus 13,52


53

Matthaus 13,53

Und es geschah, als Jesus diese Gleichnisse beendet hatte, zog er von dort weg.

--- es -------- --- Jesus ----- ----------- beendet ------ --- er --- ---- weg.

--- -- geschah, --- ----- ----- ----------- beendet ------ --- -- --- dort ----

Matthaus 13,53


54

Matthaus 13,54

Und als er in seine Vaterstadt kam, lehrte er sie in ihrer Synagoge, so dass sie staunten und sprachen: Woher hat dieser solche Weisheit und solche Wunderkräfte?

--- als -- -- seine ---------- ---- lehrte -- --- in ----- --------- so ---- --- staunten --- --------- Woher --- ------ solche -------- --- solche --------------

--- --- er -- ----- ---------- ---- lehrte -- --- -- ----- Synagoge, -- ---- --- -------- und --------- ----- --- ------ solche -------- --- ------ --------------

Matthaus 13,54


55

Matthaus 13,55

Ist dieser nicht der Sohn des Zimmermanns? Heißt nicht seine Mutter Maria, und seine Brüder [heißen] Jakobus und Joses und Simon und Judas?

--- dieser ----- --- Sohn --- ------------ Heißt ----- ----- Mutter ------ --- seine ------- --------- Jakobus --- ----- und ----- --- Judas?

--- ------ nicht --- ---- --- ------------ Heißt ----- ----- ------ ------ und ----- ------- --------- ------- und ----- --- ----- --- Judas?

Matthaus 13,55


56

Matthaus 13,56

Und sind nicht seine Schwestern alle bei uns? Woher hat dieser denn das alles?

--- sind ----- ----- Schwestern ---- --- uns? ----- --- dieser ---- --- alles?

--- ---- nicht ----- ---------- ---- --- uns? ----- --- ------ ---- das ------

Matthaus 13,56


57

Matthaus 13,57

Und sie nahmen Anstoß an ihm. Jesus aber sprach zu ihnen: Ein Prophet ist nirgends verachtet außer in seinem Vaterland und in seinem Haus!

--- sie ------ ------- an ---- ----- aber ------ -- ihnen: --- ------- ist -------- --------- außer -- ------ Vaterland --- -- seinem -----

--- --- nahmen ------- -- ---- ----- aber ------ -- ------ --- Prophet --- -------- --------- ------ in ------ --------- --- -- seinem -----

Matthaus 13,57


58

Matthaus 13,58

Und er tat dort nicht viele Wunder um ihres Unglaubens willen.

--- er --- ---- nicht ----- ------ um ----- ---------- willen.

--- -- tat ---- ----- ----- ------ um ----- ---------- -------

Matthaus 13,58