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Deutsch 59-Jakobus 003(Schl2000)

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1

Jakobus 3,1

Werdet nicht in großer Zahl Lehrer, meine Brüder, da ihr wisst, dass wir ein strengeres Urteil empfangen werden!

------ nicht -- ------- Zahl ------- ----- Brüder, -- --- wisst, ---- --- ein ---------- ------ empfangen -------

------ ----- in ------- ---- ------- ----- Brüder, -- --- ------ ---- wir --- ---------- ------ --------- werden!

Jakobus 3,1


2

Jakobus 3,2

Denn wir alle verfehlen uns vielfach; wenn jemand sich im Wort nicht verfehlt, so ist er ein vollkommener Mann, fähig, auch den ganzen Leib im Zaum zu halten.

---- wir ---- --------- uns --------- ---- jemand ---- -- Wort ----- --------- so --- -- ein ------------ ----- fähig, ---- --- ganzen ---- -- Zaum -- -------

---- --- alle --------- --- --------- ---- jemand ---- -- ---- ----- verfehlt, -- --- -- --- vollkommener ----- ------- ---- --- ganzen ---- -- ---- -- halten.

Jakobus 3,2


3

Jakobus 3,3

Siehe, den Pferden legen wir die Zäume ins Maul, damit sie uns gehorchen, und so lenken wir ihren ganzen Leib.

------ den ------- ----- wir --- ------ ins ----- ----- sie --- ---------- und -- ------ wir ----- ------ Leib.

------ --- Pferden ----- --- --- ------ ins ----- ----- --- --- gehorchen, --- -- ------ --- ihren ------ -----

Jakobus 3,3


4

Jakobus 3,4

Siehe, auch die Schiffe, so groß sie sind und so rau die Winde auch sein mögen, die sie treiben - sie werden von einem ganz kleinen Steuerruder gelenkt, wohin die Absicht des Steuermannes will.

------ auch --- -------- so ----- --- sind --- -- rau --- ----- auch ---- ------- die --- ------- - --- ------ von ----- ---- kleinen ----------- -------- wohin --- ------- des ------------ -----

------ ---- die -------- -- ----- --- sind --- -- --- --- Winde ---- ---- ------- --- sie ------- - --- ------ von ----- ---- ------- ----------- gelenkt, ----- --- ------- --- Steuermannes -----

Jakobus 3,4


5

Jakobus 3,5

So ist auch die Zunge ein kleines Glied und rühmt sich doch großer Dinge. Siehe, ein kleines Feuer - welch großen Wald zündet es an!

-- ist ---- --- Zunge --- ------- Glied --- ------ sich ---- ------- Dinge. ------ --- kleines ----- - welch ------- ---- zündet -- ---

-- --- auch --- ----- --- ------- Glied --- ------ ---- ---- großer ------ ------ --- ------- Feuer - ----- ------- ---- zündet -- ---

Jakobus 3,5


6

Jakobus 3,6

Und die Zunge ist ein Feuer, eine Welt der Ungerechtigkeit. So nimmt die Zunge ihren Platz ein unter unseren Gliedern; sie befleckt den ganzen Leib und steckt den Umkreis des Lebens in Brand und wird selbst von der Hölle in Brand gesteckt.

--- die ----- --- ein ------ ---- Welt --- ---------------- So ----- --- Zunge ----- ----- ein ----- ------- Gliedern; --- -------- den ------ ---- und ------ --- Umkreis --- ------ in ----- --- wird ------ --- der ------ -- Brand ---------

--- --- Zunge --- --- ------ ---- Welt --- ---------------- -- ----- die ----- ----- ----- --- unter ------- --------- --- -------- den ------ ---- --- ------ den ------- --- ------ -- Brand --- ---- ------ --- der ------ -- ----- ---------

Jakobus 3,6


7

Jakobus 3,7

Denn jede Art der wilden Tiere und Vögel, der Reptilien und Meerestiere wird bezwungen und ist bezwungen worden von der menschlichen Natur;

---- jede --- --- wilden ----- --- Vögel, --- --------- und ----------- ---- bezwungen --- --- bezwungen ------ --- der ------------ ------

---- ---- Art --- ------ ----- --- Vögel, --- --------- --- ----------- wird --------- --- --- --------- worden --- --- ------------ ------

Jakobus 3,7


8

Jakobus 3,8

die Zunge aber kann kein Mensch bezwingen, das unbändige öœbel voll tödlichen Giftes!

--- Zunge ---- ---- kein ------ ---------- das ---------- ------- voll ---------- -------

--- ----- aber ---- ---- ------ ---------- das ---------- ------- ---- ---------- Giftes!

Jakobus 3,8


9

Jakobus 3,9

Mit ihr loben wir Gott, den Vater, und mit ihr verfluchen wir die Menschen, die nach dem Bild Gottes gemacht sind;

--- ihr ----- --- Gott, --- ------ und --- --- verfluchen --- --- Menschen, --- ---- dem ---- ------ gemacht -----

--- --- loben --- ----- --- ------ und --- --- ---------- --- die --------- --- ---- --- Bild ------ ------- -----

Jakobus 3,9


10

Jakobus 3,10

aus ein und demselben Mund geht Loben und Fluchen hervor. Das soll nicht so sein, meine Brüder!

--- ein --- --------- Mund ---- ----- und ------- ------- Das ---- ----- so ----- ----- Brüder!

--- --- und --------- ---- ---- ----- und ------- ------- --- ---- nicht -- ----- ----- --------

Jakobus 3,10


11

Jakobus 3,11

Sprudelt auch eine Quelle aus derselben ö-ffnung Süßes und Bitteres hervor?

-------- auch ---- ------ aus --------- --------- Süßes --- -------- hervor?

-------- ---- eine ------ --- --------- --------- Süßes --- -------- -------

Jakobus 3,11


12

Jakobus 3,12

Kann auch, meine Brüder, ein Feigenbaum Oliven tragen, oder ein Weinstock Feigen? So kann auch eine Quelle nicht salziges und süßes Wasser geben.

---- auch, ----- -------- ein ---------- ------ tragen, ---- --- Weinstock ------- -- kann ---- ---- Quelle ----- -------- und ------- ------ geben.

---- ----- meine -------- --- ---------- ------ tragen, ---- --- --------- ------- So ---- ---- ---- ------ nicht -------- --- ------- ------ geben.

Jakobus 3,12


13

Jakobus 3,13

Wer ist weise und verständig unter euch? Der zeige durch einen guten Wandel seine Werke in Sanftmütigkeit, die aus der Weisheit kommt!

--- ist ----- --- verständig ----- ----- Der ----- ----- einen ----- ------ seine ----- -- Sanftmütigkeit, --- --- der -------- ------

--- --- weise --- ----------- ----- ----- Der ----- ----- ----- ----- Wandel ----- ----- -- ---------------- die --- --- -------- ------

Jakobus 3,13


14

Jakobus 3,14

Wenn ihr aber bitteren Neid und Selbstsucht in eurem Herzen habt, so rühmt euch nicht und lügt nicht gegen die Wahrheit!

---- ihr ---- -------- Neid --- ----------- in ----- ------ habt, -- ------ euch ----- --- lügt ----- ----- die ---------

---- --- aber -------- ---- --- ----------- in ----- ------ ----- -- rühmt ---- ----- --- ----- nicht ----- --- ---------

Jakobus 3,14


15

Jakobus 3,15

Das ist nicht die Weisheit, die von oben kommt, sondern eine irdische, seelische, dämonische.

--- ist ----- --- Weisheit, --- --- oben ------ ------- eine --------- ---------- dämonische.

--- --- nicht --- --------- --- --- oben ------ ------- ---- --------- seelische, ------------

Jakobus 3,15


16

Jakobus 3,16

Denn wo Neid und Streitsucht ist, da ist Unordnung und jede böse Tat.

---- wo ---- --- Streitsucht ---- -- ist --------- --- jede ----- ----

---- -- Neid --- ----------- ---- -- ist --------- --- ---- ----- Tat.

Jakobus 3,16


17

Jakobus 3,17

Die Weisheit von oben aber ist erstens rein, sodann friedfertig, gütig; sie lässt sich sagen, ist voll Barmherzigkeit und guter Früchte, unparteiisch und frei von Heuchelei.

--- Weisheit --- ---- aber --- ------- rein, ------ ------------ gütig; --- ------ sich ------ --- voll -------------- --- guter --------- ------------ und ---- --- Heuchelei.

--- -------- von ---- ---- --- ------- rein, ------ ------------ ------- --- lässt ---- ------ --- ---- Barmherzigkeit --- ----- --------- ------------ und ---- --- ----------

Jakobus 3,17


18

Jakobus 3,18

Die Frucht der Gerechtigkeit aber wird in Frieden denen gesät, die Frieden stiften.

--- Frucht --- ------------- aber ---- -- Frieden ----- ------- die ------- --------

--- ------ der ------------- ---- ---- -- Frieden ----- ------- --- ------- stiften.

Jakobus 3,18